Dear सक्सेस,
भले ही बहुत समय बाद जज्बातों की स्याही और हृदय की कोमलता से तुमको पाती लिख रहा, लेकिन तुमने समय समय पर यह अहसास कराकर मन रोमांचित कर दिया कि तुम्हारा साथ मेरे साथ है।
वक़्त के समय समय पर मिले सपाटों ने न सिर्फ तुमको डगमगा दिया था बल्कि अस्त व्यस्त कर तुम्हारे वजूद को खत्म करने की कोशिश की और ऐसा लगा मानो सबकुछ खत्म सा हो गया.. पर जिस प्रकार एक बच्चा चलने की कोशिश करता है तो गिरता है उठता है और फिर चलने का प्रयास करता है ठीक उसी प्रकार तुम्हारे साथ ने मुझे भी विकट विषम परिस्थितियों में हारने नहीं दिया और मानो ऐसा फील हुआ कि नया जन्म मिला हो। लेकिन पता नहीं आज मन में डर सा है और अंदर से सिर्फ यही आवाज का स्मरण हो रहा कि Dear Success... अब तुम हारना मत.....
छोटी सी जिंदगी में तमाम उतार चढ़ाव देखने के बाद एक वक़्त ऐसा भी आ गया था जिसमें लगता था कि जंहा से शुरू किया वही खत्म हो गया और आगे की जिंदगी उसी कुएं के मेढ़क की तरह भेड़ चाल में चलना है, मजबूरी के दामन में दिलों दिमाग़ की स्वीकृति न होते हुए भी सबकुछ स्वीकार कर गुमनामी के तरफ बढ़ना पड़ रहा था और पता Dear Success... ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने तुम्हारा अंतिम संस्कार कर दिया हो कंही से कोई सुगबुगाहट भी नहीं मिली थी.. बस पास बची थी तो यादें और बातें, पर अचानक से तुम गहरी निद्रा से जागी और मायानगरी के लिए लिखी मेरी लाइने याद दिला दी कि
"तुम कमसिन जवानी सी हो, न बुलाती हो और न भुलाती हो.."
और वक़्त का पहिया ऐसा बदला कि नागिन के जहर जैसे हालातों से दूर वापस मुंबई पहुंचा दिया। कहते है न कि आपके पास दोस्त और अच्छे हो भले ही कम हो तो बिखरी हुई चीजें भी सिमट जाती है और ऐसी ही मेरी क्लासमेट शिवानी के मोटिवेशन से वापस मुंबई के आँचल में प्रिय सफलता तुम्हारा लाड़ दुलार पाने आ गया। कभी कभी तो मन प्रफुल्लित होता है और कभी कभी मन व्याकुल हो जाता है और मन में यह बात कौधने लगती है कि डियर सक्सेस... अब तुम मत हारना।
खैर कहने को तो बहुत कुछ है पर कंहा से शुरू करू, कंहा खत्म करूँ, क्या लिखूं और क्या न लिखूं.... यह सब अभी समझ से परे है क्योंकि दिल से लिखता हूँ दिमाग़ से नहीं... मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम अपना ख्याल रखोगी और मुझे आगे ये कहने का अवसर नहीं दोगी कि डियर सक्सेस.... तुम हारना मत
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