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पतिदेव सावधान : अनसुनी चीखें, अनदेखे आँसू!





मर्द को दर्द नहीं होता…?  मर्द रोते नहीं…? अरे! किसने कह दिया ये झूठ? किसने गढ़ दिए ये बेरहम उसूल? किसने तय कर दिया कि तकलीफ सिर्फ औरतों का हिस्सा है? "पति मार खाए तो मज़ाक, पत्नी रो दे तो अत्याचार!" बीवी के हर आँसू पर कानून खड़ा हो जाता है, मगर जब पति का गला घोंटा जाता है, तो सिस्टम, मीडिया, और फेमिनिस्ट गैंग अंधी-बहरी हो जाती है!  पति की लम्बी आयु के लिए मांग तो भर ली जाती है पर उसी पति की जान ले ली जाती है। आज बात करेंगे समाज के उस अनछुए सच की जंहा मर्द को भगवान तो बना दिया… मगर जिंदगी जी लेने का हक छीन लिया जाता है। 
ज्यादा पुरानी बात ही क्या करना अभी कुछ घंटे पहले का ही उदाहरण देख लीजिये जंहा शादी के महज 15  दिनों के बाद ही शादी के रस्मों के पैसो से अपने पति की सुपारी दे दी। जी, घटना औरय्या की है जंहा एक पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की साजिश रची और 2 लाख रुपए में सुपारी देकर उसकी हत्या करा दी। ऐसा ही कुछ मेरठ से अभी हाल में ही आपको सुनने को मिला होगा जंहा एक पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति के टुकड़े -टुकड़े कर दिए और पानी के ड्रम में भरकर सीमेंट से पैक कर दिये।  बेशर्मी की हद यही नहीं रुकी पति के टुकड़े टुकड़े कर पत्नी प्रेमी के साथ मनाली घूमने भी चले गए। ऐसे तमाम कृत्य बड़े ही आसानी से हमे पढ़ने और सुनने को मिल जाएंगे जो दिल को झकझोर कर रख देते है। 
समाज का एक अनछुआ सच यह भी है कि हर साल हजारों मर्द झूठे इल्ज़ाम में फँसते हैं, अपनी जान दे देते हैं…मगर इस सड़े हुए समाज की नींद नहीं टूटती क्योंकि कहा जाता है कि महिला तब तक दोषी नहीं जब तक गुनाहगार साबित न हो जाये और पुरुष तब तक गुनहगार जब तक वह निर्दोष साबित नहीं हो जाता है। इसी दोहरे रवैये के कारण औरत का झूठा आँसू सिस्टम को झुका सकता है, मगर मर्द की चीखें दीवारों में दफ्न हो जाती है। बात चाहे दहेज प्रथा कानून के दुरूपयोग की हो या फिर घरेलू हिंसा का कानून, या फिर गुजारा भत्ता कानून के दुरूपयोग की हो ऐसा लगता  एकतरफा लूट, जहाँ मर्द बस एटीएम बना दिया जाता है।  
आपको हैजटैक मी टू तो याद होगा पर हैज टैग मैन टू याद है ? नहीं याद है न , बताते है अक्टूबर 2018 में  #MenToo कैंपेन की शुरुआत  चिल्ड्रन राइट्स इनिशिएटिव फॉर शेयर्ड पेरेंटिंग (Crisp) ने की थी।  इस अभियान की शुरुआत करते हुए 15 लोगों के एक समूह ने पुरुषों से कहा था कि वे महिलाओं के हाथों अपने यौन शोषण के बारे में खुलकर बोलें। फ्रांस के एक पूर्व राजनयिक भी शामिल हैं, जिन्हें साल 2017 में यौन उत्पीड़न के एक मामले में अदालत ने बरी कर दिया था।  बात यदि आंकड़ों की करें तो देश में पति के उत्पीड़न के बढ़ते मामले स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 2005 में 52,583 विवाहित पुरुषों ने आत्महत्या कर ली। 2006 में 55,452 विवाहित पुरुषों ने अपना जीवन नहीं जिया, जबकि 2007 में 57,593 विवाहित पुरुषों ने खुद को मार डाला। कारणों के स्पष्ट हुए बिना भी यह स्पष्ट है कि पति के उत्पीड़न और दुरुपयोग के मामलों में वृद्धि हो रही है। ख़ास बात तो ये है कि महिला एवं बाल अपराध से जुड़े आंकड़े तो प्राथमिकता के साथ पेश किये जाते परन्तु पुरुष उत्पीड़न को लेकर आंकड़ों की कोई ख़ास रिपोर्ट तक तैयार नहीं होती जबकि भारतीय संविधान के अनुसात महिला पुरुष एक समान है।  अजादी के लगभग 70 वर्षों में देश में पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए या उनके कल्याण को देखने के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है। ये तो बात हुई आंकड़ों की अब ऐसे पहलू को आपके सामने रखते है जिसे देख आप वाकई हैरान हो जाएंगे। 
जी हाँ, बहुत समय से अब तक प्रताड़ित पति कुछ भी नहीं कर सकते हैं, बल्कि अपने भयानक दु:खद जीवन के साथ रह सकते हैं या अपनी जिंदगी ले कर इसे समाप्त कर सकते हैं। पीड़ित पुरुषों को न्याय और सहारा दिलाने के लिए कई एनजीओ पीड़ित पुरुष हैल्पलाइन भी चला रहे है। खबर की परखनली में जब हमने देखा तो एआईएमडब्ल्यूए एक स्व-सहायता समूह मिला यह समूह जो सभी संभावित तरीकों से सहायता, सलाह और परेशान पतियों की मदद करता है। प्रत्येक राज्य में  24×7 हेल्पलाइन के  द्वारा किसी को भी कॉल और सहायता प्रदान करता है। जब अपनी खबर वाली परखनली को थोड़ा और गर्म किया तो वह हमे भोपाल की दहलीज पर ले गई जंहा 'सेव इंडियन फैमिली' ने 'भोपाल अगेंस्ट इन्जस्टिस(भाई)' नाम से अपनी एक ब्रांच शुरू की है। यह ब्रांच 20 जुलाई, 2014 से काम कर रही है। इतना ही नहीं एनजीओ का अपना एंड्रॉएड मोबाइल ऐप्लीकेशन- 'SIF ONE' भी है। इनके हेल्पलाइन पर लगभग आधा सैकड़ा कॉल रोज प्रताड़ित पुरुषों की आती है। सिर्फ इतने में मन नहीं भरा तो हमने खबर वाली परखनली को थोड़ा और गर्म किया और आये हुए परिणाम ने हमे पहुंचा दिया औरंगाबाद के बाद मुंबई- शिरडी हाइवे पर जंहा पत्नी पीड़ित पुरुष आश्रम मिला। साल नवंबर 2016 में शुरू हुए इस आश्रम में पत्नियों से प्रताड़ित पतियों के लिए एक अनोखा आश्रम है, जहाँ पतियों को आश्रय और कानूनी सहायता मिलती है। इस आश्रम को भारत फुलारे ने स्थापित किया था, जो खुद भी पत्नी से पीड़ित थे। 
अब तो समझ ही गए होंगे क्या मर्द के हिस्से में सिर्फ दर्द ही होने चाहिए जिनके लिए कोई ठोस कानून तक नहीं या फिर यही सुनकर खुश है कि मर्द को दर्द नहीं होता ? बात समानता की होती है तो जब महिला आयोग है तो पुरुष आयोग क्यों नहीं ? या फिर यह कहना उचित है कि देश में जानवरों के लिए भी शेल्टर होम हैं, मगर पत्नी-पीड़ित मर्दों के लिए सिर्फ शमशान घाट बचा है। आप क्या सोचते हैं? कमेंट करके बताइए क्योंकि अब वक्त आ गया है कि झूठी धारणाएँ तोड़ी जाएँ! "मर्द को दर्द नहीं होता" इस जहरीले जुमले को मिटाने का समय आ गया है!

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