*एक मुक्कमल ज़िंदगी बर्बाद कर दी।
फिर भी आप बेगुनाह हो, हद कर दी।
अब यूँ ही ख्यालों में गुजर जाता है वक्त,
बस्ती अपने अरमानों की राख कर दी।
चूर होकर मोहब्बत के नशे में,
खुशियां आज अपनी नीलाम कर दी।
सिर्फ मुस्कुराई थी वो नजरें छुपाकर,
सारी दुनिया अपनी उसके नाम कर दी।*
-पारसमणि अग्रवाल
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