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नारी सशक्तिकरण की कोख में पुरूष विर्मश का नवांकुर पनप रहा है...




साल के 356 दिन में नारी को एक दिन में अर्थात् महिला दिवस के रूप में समेट लाने की प्रथा बड़े-बड़े समाचार पत्रों में बड़ी-बड़ी फोटो के साथ प्राथमिकता के साथ प्रकाशित होती है। अच्छी बात है, हालांकि भारत की नारी ने समय समय पर खुद को सबला साबित किया है और बता दिया है कि अगर महिलाएं खुद सोच लें तो दुनिया में कोई भी इतना ताकतवर नहीं है जो महिलाओं को उनकी स्वतंत्रता भीख में दे सके। खैर, आप आजाद भारत के आजाद नागरिक है। आपकी प्रतिक्रिया भी सर्वोपरि है लेकिन काश समानता का अलाप रागने वाले, नारी को अबला बताने वाले एकतरफा न सोच जरा इस बात पर भी अपनी नजर डालते की नारी सशक्तिकरण की कई फंलागों से चली आ रही मुहिम कितनी कारगर साबित हो रही है?  

यदि सालों से नारी को सशक्त बनाने के प्रयासों के बाद यदि आज भी नारी सशक्तिकरण के नाम पर नारी को कमजोर बताने की जरूरत पड़ रही है तो हमारे प्रयासों में कहां कमी रह गई हैं? और यदि हमारे प्रयास सही दिशा में चल रहे तो कहीं ऐसा कोई तबका तो नहीं जो इससे प्रभावित हो रहा हो? इसको गलत उपयोग में लाया जा रहा हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे प्रयास दिशाहीन होकर सामानता की भावना के साथ तू डाल-डाल, मैं पात-पात का खेल खेल रहे हो? धरातल पर आइये साहब....रटारटाया सम्बोधन देकर अपनी फोटो छपवा लेने भर से काम नहीं चलने वाला। थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा होगा मगर ये सच है कि नारी सशक्तिकरण की कोख में पुरूष विर्मश का नवांकुर पनप रहा है...

बिल्कुल सही सुने वही पुरूष विर्मश का नवांकुर जो संविधान की भावनाओं के साथ खेल रहा है, जो न कि सामाजिक व्यवस्था में अवरोधक साबित हो सकता है बल्कि विर्मश का स्वरूप ही बदल रहा है। यह सर्व सामानता की भावना को भी कठघरे में घसीट रहा हैं। कहा जाता हैं कि नारी पुरूष एक गाड़ी के दो पहियों की भांति होता है और पंचर होने की बात तो छोड़ दीजिए यदि एक भी पहिये में हवा भी कम हो जाती है तो सुखद जिदंगी डगमगा जाती है।

कभी आंकड़ों पर गौर कीजिए नारी के द्वारा पुरूष उत्पीड़न के आंकड़े देखकर दिल दहल जाएगा और आप स्वंय ही इस बात को कह उठेंगें कि ‘‘हां, नारी सशक्तिकरण की कोख में पनप रहा पुरूष विर्मश का नवांकुर।’’ इस बात का सत्यापन नारियों के द्वारा सताए गए पुरूषों के आंकड़े स्वंय अपनी स्थिति बता रहे है और चीख-चीख कर कह रहे है कि नारी सशक्तिकरण का दुरूपयोग पुरूष वर्ग को कमजोर बनाने पर तुला है। मैं यह नहीं कहता कि नारियों का सम्मान न हो उन्हें उनका हक न मिले। लेकिन बात समानता की है तो सामान रूप से मिले। कम से कम एक बार विचार अवश्य कीजिए


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