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समस्याओं का गुलाम है युवा देश का युवा



वर्तमान में युवा देश का युवा समस्याओं की मेड़ पर बेदम पड़ा होकर अपने को समस्याओं का गुलाम महसूस कर रहा है। युवा देश की युवा शक्ति अपनी दिक्कतो पर सिर्फ और सिर्फ सियाशी रोटी बनते हुए देख ठगा सा महसूस कर रही है। जबकि युवा शक्ति एक ऐसी शक्ति है जो अपनी कार्य क्षमता और लग्नशीलता से देश की तकदीर व तस्वीर बदलने में महत्वपूर्ण योगदान देती है इस सम्बन्ध में एक किदवंती भी है कि वृद्ध देश के मस्तिक है तो युवा देश के हाथ पैर है। हमारे बुजुर्गों ने भी सम्भवतः इस कहावत का समर्थन करते हुये कहा है कि यदि युवा शब्द का उल्टा करें तो वायु शब्द बनता है और वायु जब मंद मंद चलती है तो पुरबाई होती है लेकिन जब वायु अपनी औखात में आती है तो तूफान आ जाता है। तूफानी ताकत रखने वाले युवाओं को दिक्कतो का मकड़जाल जकड़ता जा रहा है और वह मार से बुरी तरह कराह रहा है। जिम्मेदार सरकारें, जनप्रतिनिधि, युवा हितैषी गैर शासकीय सामाजिक संस्थाये एवं संगठन मुँह और कान पर अंगुली रख गूँगे बहरे बने बैठे है बात चाहे शिक्षा की करें या खेल की । बात चाहे रोजगार की करें या स्वरोजगार की बात राजनीति की करें या फिर सामाजिक सम्मान की।
लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा माने जाने वाली राजनैतिक पार्टिया बड़े बड़े मंच से युवाहित की बात गला फाड़ फाड़ कर देश के एक बड़े वोट बैंक को अपनी और आकर्षित करती दिखाई देती है कि यदि उनकी सरकार बनी तो युवाओं की सरकार होगी। युवाओं को प्रथम प्राथमिकता मिलेगी। युवाओं के लिये ये करेंगे वो करेंगे इत्यादि। 
लेकिन जैसे ही युवाओं का वोट बैंक पाकर सत्ता की चाहत पूरी होती है तो वह अपनी घोषणाओं को चुनावी जुमला कहकर नजरअंदाज कर देते है कुछ सरकारें सत्ता सुख में चुनाव में किये गए वादों पर एक नज़र डालते हुये युवाओं को उनके वोट के बदले एक लालीपॉप थाम देती है। सत्ता में पहुँची ये पार्टियां अपने ऊपर विपक्ष के विरोध के डर से वादे तो पूरा करती हुयी दिखाई देती है मगर हक़ीक़त खानापूर्ति की जाती है। चुनाव के समय वादा तो सभी युवाओं से किया जाता है किन्तु वोट लेकर सत्ता पर आसीन होते ही इन युवाओं को वर्ग जाति धर्म में बाँट कर  भेदभाव का रुख अपना लेती है अर्थात जब वादा किया जाता है तो योजना बिना शर्त बिना नियम के साथ सबके लिये होती है लेकिन जब निभाने का वक्त आता है
 तो तमाम प्रकार के नियम एवं शर्तें लागू हो जाती है जिससे अपात्र युवा तो इन योजनाओं का आसानी से लाभ उठा सकते है जबकि पात्र युवा अपने असली हक से वंचित हो जाता है। सही मौका का फ़ायदा उठाते हुये विपक्ष अपने आप को युवा कल्याणकारी सिद्ध करने के लिये सरकार पर युवाओं की अनदेखी का आरोप लगाती है। विपक्षी पार्टियां सत्तासीन पार्टी पर आरोप लगाते हुये अपने द्वारा युवाहित के किये गये वादों को ध्यान दिलाते हुये युवाओं को गलत सरकार चुनने का अहसास कराने का प्रयास करती है और यदि उनकी सरकार होती तो युवा हितकारी सरकार होती जो युवाओं की दिक्कतो को गम्भीरता से लेते हुए उनका निराकरण करने में सक्षम होती ।सोची समझी रणनीति के तहत ये विपक्षी दल युवा वोट बैंक को अपनी और आकर्षित करने का प्रयास करते है। लेकिन यहाँ एक प्रश्न उठता है कि वाकई में क्या युवाहित की बात कर अपनी राजनीति चमकाने वाली राजनैतिक पार्टिया युवा हितैषी है?
इस अहम सवाल का गहनता और ईमानदारी के साथ जबाब तलाशा गया तो आप भी इसी निष्कर्ष पर पहुँचे होंगे कि "नहीं" 
क्योंकि यह पार्टियां वास्तव में युवा हितैषी नहीँ बल्कि युवाहितैषी होने का स्वांग रचती है। यदि ये पार्टिया वास्तव में युवाओं के नाम पर सिर्फ राजनीति न कर उन्हें प्राथमिकता दे रही होती तो इस बात का परिणाम वादा करने और सरकार बनने से पूर्व ही आता दिखाई देता। 
अधिकांश राजनैतिक दल युवाहित की बात तो करते है लेकिन कितने राजनैतिक दलों ने युवाओं को मान्यता देकर अपनी पार्टी से सर्वाधिक उम्मीदवार युवा प्रत्याशी को बनाया। पार्टियों का असली चेहरा इसी से देखा जा सकता है। 
वर्तमान राजनैतिक परिवेश में युवा सिर्फ एक राजनैतिक मुद्दा बनकर रह गया । चुनाव आते ही हमारे राजनैतिक दलों का अंधापन ख़त्म हो जाता है और हमारी परेशानियां नजर आने लगती है। चुनाव सम्पन्न होते ही हमारे राजनैतिक दलों के कर्णधार एसी के मुरीद हो जाते है। वर्तमान समय में राजनैतिक परिवेश का परीक्षण करते हुये मै यह वास्तविक और कड़वे परिणाम पर पहुँचा कि हमारे जिम्मेदार हमारे राजनैतिक दल ही नहीं चाहते कि हम युवाओं की समस्याओ का निराकरण होते ही मामला बहुत ही पेंचीदा हो सकता है। यही कारण है कि राजनैतिक दल युवाओं की दिक्कतो का निराकरण कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारकर युवा रूपी वोटबैंक खोना नही चाहते।



आपकी प्रतिक्रियाओं के इंतजार में आपका अपना

पारसमणि अग्रवाल 
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