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स्वार्थ की पूर्ति हेतु क्या यह जायज है

कॉलेज,विश्वविद्यालयों में अध्यनरत रहकर युवा अपने विचारों का समाज के सामने लाने का साहस कर पाता है। अपनी सम्वेदनाओं को लोगों से परिचय कराने की हिम्मत जुटा पाता है।
निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन की बातकर उसके विचार को न सिर्फ दबाने की कोशिश की जाती है बल्कि सुनियोजित तरीके से उसका इतना मानसिक शोषण कर दिया जाता है कि सही होते हुये भी वह खुद को सही साबित करने में भयभीत रहता है।
यही वक्त होता है जब वह अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करता है स्वार्थ की पूर्ति हेतु क्या यह जायज है
# हमतोलिखेंगे

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