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सम्भावना अधारित है अरस्तू का संचार प्रतिरूप

जब महान दार्शनिकों की बात की जाये तो अरस्तू का नाम जहन में स्वतः ही तारोताजा हो जाता है। अरस्तू पश्चिमी दर्शन शास्त्र के महान दार्शनिकों में से एक है। महान विचारक प्लेटो के शिष्य अरस्तू ने भौतिकी, कविता, अध्यात्म, संगीत, तर्कशास्त्र, संचार, राजनीति शास्त्र, नीति शास्त्र, जीव विज्ञान सहित तमाम विषयों पर अपने मत दिये। अरस्तु का जन्म ३८४ ईस्वी पूर्व में हुआ था और वह ६२ वर्ष तक जीवित रहे।उनका जन्म स्थान स्तागिरा नामक नगर था। उनके पिता मकदूनिया के राजा के दरबार में शाही वैद्य थे। इस प्रकार अरस्तु के जीवन पर मकदूनिया के दरबार का काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। उनके पिता की मौत उनके बचपन में ही हो गई थी।
अरस्तू ने संचार पर अपना प्रतिरूप अर्थात् मॉडल देते हुये बताया कि

वक्ता -  भाषण -  अवसर  -  श्रोता 
-  प्रभाव 

पॉच तत्वों से निर्मिति अरस्तू का संचार प्रतिरूप तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप प्रदर्शित होता नजर आता है क्योंकि अरस्तू ने अपने प्रतिरूप में बताया है कि वक्ता अर्थात् बोलने वाले द्वारा अपने भाषण द्वारा एक उचित अवसर पर श्रोताओं अर्थात् सुनने वालों पर प्रभाव डालता है। अरस्तू के मॉडल में किसी चैनल मतलब माध्यम का न होना इस ओर साफ इशारा कर रहा है कि इस प्रतिरूप की उत्पत्ति उस समय की गई थी जब प्रभावी संचार माध्यम नहीं थे। इसे इस प्रकार भी समझ सकते है कि गुरूकुल में गुरू एक स्थान  पर बैठकर अपने शिष्यों को शिक्षा अर्थात् भाषण देता है उस शिक्षा को शिष्यों द्वारा ग्रहण किया जाता है अर्थात् उस भाषण का प्रभाव श्रोताओं पर पड़ता है।
प्रभावी संचार माध्यम के अभाव को देखते हुये अरस्तू के मॉडल का मूल्याकंन वर्तमान परिवेश के साथ करने के वजह तत्कालीन समय के साथ भी करें तो प्रतिरूप में कमी स्पष्ट रूप से सतह पर उभरती नजर आयेगी। अरस्तू के मॉडल में कहा गया है कि वक्ता द्वारा किसी अवसर पर दिया गया भाषण से श्रोताओं पर प्रभाव पड़ता है लेकिन इस बात की प्रबल पुष्टि होती कहीं नजर नहीं आ रही है कि ये आवश्यक हो कि वक्ता द्वारा दिये गये भाषण को श्रोता ने ग्रहण किया हो और जब श्रोता द्वारा भाषण को ग्रहण ही नहीं किया गया तो प्रभाव पड़ने की कल्पना निराधार साबित होगी। यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि अरस्तू का मॉडल सम्भावना अधारित है। इस आलोचना के सही होने की पुष्टि इस उदाहरण से की जा सकती है कि श्रीमद् भागवत कथा में व्यास जी द्वारा अपने भाषण को वहॉ मौजूद सैकड़ो लोगों द्वारा पहुॅचाया जाता है लेकिन उसमें से कुछ श्रोताओं द्वारा भाषण पर प्राथमिकता न देते हुये अन्य कार्यो में खुद को व्यस्त कर दिया जाता है तो ऐसे में उन श्रोताओें पर कतई प्रभाव पड़ने की सम्भावना नहीं है।
अरस्तू के इस मॉडल की मानव संचार शास्त्र पुस्तक में स्पष्ट लिखा है कि अरस्तू के प्रतिरूप को हम इस प्रकार समझ सकते है कि ‘‘वक्ता अर्थात् सन्देश प्रसारित करने वाला संदेश प्रसारित करने वाला अपना संदेश मौखिक रूप से भाषण द्वारा किसी विशेष अवसर पर प्रसारित करता था उस संदेश का श्रोता पर प्रभाव पड़ता था। श्रोता किसी विशेष अवसर पर ही एकत्रित होते थे इस प्रकार अरस्तू के प्रतिरूप में पॉच तत्व मिलाकर संचार प्रक्रिया को संचालित करते है। अरस्तू ने अपने प्रतिरूप में किसी माध्यम का उल्लेख नहीं किया है। सम्भवतः इसका कारण यह रहा कि उस समय कोई प्रचलित प्रभावी संचार माध्यम नहीं थे। प्रायः संचार मौखिक ही होता था। इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि अरस्तू का संचार प्रतिरूप सम्भावना अधारित है।