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क्या ऐसे भी होते सीनियर

सीनियर शब्द कानों तक पहुँचते ही जहन में रैगिंग जैसी घटनाओं का चित्रण होने लगता है। नये शहर के नए माहौल में नए लोगों के बीच नये कॉलेज के नए अनुभवों के साथ जब घरवापसी होती है और अपने पुराने कॉलेज जँहा से स्नातक किया है घर आ जाने का संज्ञान होते ही गुरुजनों, सहपाठियों एवं जूनियरों द्वारा मुलाकात की इक्छा जाहिर करते हुये कॉलेज बुला लिया जाता है। गुरुजनों के साथ साथ विद्यार्थियों में भी अत्याधिक स्नेह पात्र होने के कारण मुख्य गेट पर ही वँहा मौजूद परिचित विद्यार्थियों के चेहरे पर एक अजीब सी ख़ुशी देखने को मिलती है जो मेरे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार करती है और अहसास दिलाती है कि इस महाविद्यालय में ज्ञान के साथ-साथ और भी बहुत कुछ कमाया है।
मिलने मिलाने का सिलसिला जारी होता है लेकिन इस दरम्यान सबसे अधिक पूछे जाने वाला कोई सवाल रहता है तो वह यह कि "सीनियर परेशान तो नहीं करते?"

लेकिन खुशनसीब हूँ शायद मैं, मेरे साथ रैगिंग जैसी कोई समस्या नहीं है। बल्कि विश्वास नहीं होता कि कम समय में जितने अच्छे तरीके से सीनियर के साथ ठीक उसी प्रकार घुल मिल से गये जैसे पानी में चीनी।
गरिमा मैम, प्रिंसी मैम, निधि मैम,अनुप्रिया मैम ये कुछ ऐसे नाम है एक अजनबी शहर के नए कॉलेज में जो अपनापन का अहसास कराते है। हर समस्या में साथ नजर आते है। लिखना तो बहुत कुछ चाहते पर राज राज ही रहे तो बेहतर है क्योंकि जलने वालों की संख्या काफी अधिक है और मौसम में गलनभरी सर्दी है। इसलिये यदि ज्यादा जला दिया तो सर्दी में गर्मी का अहसास हो जायेगा और बेचारे जलाऊ ईंधन और हीटर बेचने वालों का धंधा चौपट हो जायेगा ।
अब ये तो आप भी नही चाहते होगे कि किसी को जला कर किसी का धंधा चौपट कर दिया जाये इसलिये दिल की गहराइयों से सिर्फ यही बोलूंगा thanku seniour भले ही कुछ महीनों के ही कॉलेज के मेहमान हो पर यूँ ही साथ बनाये रखें।

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