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वर्तमान हालातों में बुद्ध की प्रासंगिकता



वर्तमान हालातों में बुद्ध की प्रासंगिकता अपना महत्व रखती है। बुद्ध की प्रासंगिकता पर बात करने से पहले बुद्ध को जानना जरूरी है। शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी में 533 ई0पू0 बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था । सिद्धार्थ के पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम महामाया था। बुद्ध के महापरिनिर्वाण 483 ई0पू0 कुशीनगर में हुआ था।
भगवान गौतम बुद्ध  ज्ञान की खोज उस समय शुरू हुई जब उन्होंने एक ही दिन में तीन दृश्य देखे. पहला- एक रोगी व्यक्ति, दूसरा- एक वृद्ध और तीसरा- एक शव. जीवन का यह रूप देखकर हर तरह की सुख सुविधा से संपन्न जीवन को छोड़कर राजकुमार सिद्धार्थ गौतम जंगल की ओर निकल पड़े थे ज्ञान और बोध की खोज में। सुख और सुविधाओं से इसी विरक्ति ने उन्हें राजकुमार गौतम से भगवान बुद्ध बनने की राह पर अग्रसर किया. उन्होंने जीवन में ज्ञान प्राप्त किया और इसे सभी मनुष्यों में बांटा भी.
उनके महापरिनिवार्ण के अगली पॉच शताब्दियों में बौद्ध धर्म सम्राट अशोक द्वारा पूरे भारतीय उपमहादीप में फैलाया गया और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण पूर्वी जम्मू महादीपों में भी फैल गया। वर्तमान परिवेश में बौद्ध धर्म की बात करें तो इसमें चार सम्प्रदाय है- हीनयान या थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान लेकिन बौद्ध धर्म एक ही है सभी सम्प्रदाय बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को ही मानते है सिर्फ नवयान को छोड़कर । बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में आत्म संतुलन की धारणा को विशेष महत्व दिया। उन्होनें इस बात पर बल दिया कि भोग की अति से बचना जितना आवश्यक है उतना ही योग की अति अर्थात् तपस्या की अति से भी बचना जरूरी है। भोग की अति से चेतना के चीथड़े होकर विलुप्त होकर विवेक लुप्त और संस्कार सुप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति के दिलों - दिमाग की दहलीज पर विनाश अपना  डेरा डाल देता है। ठीक वैसे ही तपस्या की अति से देह दुर्बल और मनोबल कमजोर हो जाता है। परिणामस्वरूप आत्मज्ञान की प्राप्ति अलभ्य हो जाती है, क्योंकि कमजोर और मूर्च्छित -से मनोबल के आधार पर आत्मज्ञान प्राप्त करना ठीक वैसा ही है जैसा कि रेत की बुनियाद पर भव्य भवन निर्मित करने का स्वप्न सँजोना।
बौद्ध धर्म को वर्तमान हालातों में बुद्ध की प्रासंगिकता कितनी श्रेष्ठ है आधुनिक विचारक एवं वैज्ञानिक बुद्ध तथा बुद्ध धर्म के बारे में दी गई राय से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रो0 एस0 एस0 राघावाचार्य का मत है कि भगवान बुद्ध के अविर्भाव से ठीक पहले का समय भारतीय इतिहास का सर्वाधिक अन्धकारमय युग था। चिन्तन की दृष्टि से यह पिछड़ा हुआ युग था उस समय का विचार धर्म-ग्रन्थों के प्रति अन्धविश्वास से जकड़ा हुआ था। नैतिकता की दृष्टि से भी अन्धकार पूर्ण युग था। विश्वासी हिन्दुओं के लिये नैतिकता का मतलब इतना ही था कि धर्म ग्रन्थ के अनुसार यज्ञादिकों को ठीक-ठाक करना। ‘‘आत्म-त्याग या चित्त की पवित्रता आदि जैसे यथार्थ नैतिक विचारों को उस समय के नैतिक चिन्तन में कोई उपयुक्त स्थान प्राप्त न था। श्री विनवुड रीड का कहना है कि जब हम प्रकृति की पुस्तक खोलकर देखते है , जब हम लाखों -करोड़ो वर्षों का खून तथा आंसूओं में लिखा हुआ ‘विकास’ का इतिहास पढ़ते है, जब हम जीवन को नियंत्रण कर देने वाले नियमों को पढ़ते है और नियमों को, जो विकास को जन्म देते है, तो हमें स्पष्ट दिखाई देता है कि यह सिद्धान्त परमात्मा प्रेम-रूप है, कितना भ्रामक है। ‘‘हर चीज में बदमाशी भरी पड़ी है और अपव्यय का कहीं कोई ठिकाना नहीं है। जितने भी प्राणी पैदा होते है उनमें बचने वालों की संख्या बहुत ही थोड़ी है। चाहे समुद्र में देखो, चाहे हवा में देखो और चाहे जंगल में देखो - हर जगह यही नियम है , दूसरों को खाओ और दूसरों के द्वारा खाये जाने के लिये तैयार रहो । हत्या ही विकास क्रम का कानून है।’’
प्रो0 डेविट गोडर्ड ने भी बुद्ध को आदमी में मूलतः विद्यमान उस निहित शक्ति को पहचाने वाला बताते हुये कहा है कि संसार में जितने भी धर्म संस्थापक हुये है, उनमें भगवान बुद्ध को ही यह गौरव प्राप्त है कि उन्होनें आदमी में मूलतः विद्यमान उस निहित शक्ति को पहचाना जो बिना किसी बाहय निर्भरता के उसे मोक्ष के पद पर अग्रसर कर सकती है। यदि किसी वास्तविक महान पुरूष का महात्यम इसी बात में है कि वह मानवता को कितनी मात्रा में महानता की ओर अग्रसर करता है , तो तथागत से बढ़कर दूसरा कौन सा आदमी महान हो सकता है? भगवान बुद्ध ने किसी ब्राह्य शक्ति को आदमी के उपर बिठाकर उसका दर्जा नहीं घटाया, बल्कि उसे प्रज्ञा और मंत्री के शिखर पर ले जाकर बिठा दिया है।
गौतम बुद्ध का कहना है कि चार आर्य सत्य हैं  पहला यह कि दुःख है। दूसरा यह कि दुःख का कारण है। तीसरा यह कि दुःख का निदान है। चौथा यह कि वह मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है।
गौतम बुद्ध के मत में अष्टांगिक मार्ग ही वह मध्यम मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है। अष्टांगिक मार्ग चूँकि ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्मांत, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के संदर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है, अतः मध्यम मार्ग है। मध्यम मार्ग ज्ञान देने वाला है, शांति देने वाला है, निर्वाण देने वाला है, अतः कल्याणकारी है और जो कल्याणकारी है वही श्रेयस्कर है।
‘बुद्धिज्म एथिक्स ’ नामक ग्रन्थ में प्रो0 डब्लू0 टी0 स्टास ने भी लिखा है कि संसार के दुःखों के मूल में शरारत से कहीं अधिक अज्ञान और अविद्या ही है। भगवान बु़द्ध ने इनके लिये जगह नहीं रखी।
आज के परिवेश में संस्कार, सभ्यता और संस्कृति पतन की ओर बढ़ रहे है ऐसे में गौतम बुद्धों के उपदेशों के आधुनिक परिवेश में अनुकरण करने की आवश्यकता स्पष्ट महसूस होती है। ‘आदमी का पतन कैसे होता है? इस बारे में बताते हुये बुद्ध ने कहा है कि उन्नतिशील आदमी के लक्षण भी आसान है और पतनोन्मुख आदमी के लक्षण भी आसान हैं। जो धर्म से प्रेम करता है वह उन्नत होता है जो धर्म से घृणा करता है उसका पतन होता है। असत्पुरूष उसे अच्छे लगते है, सत्पुरूष उसे अच्छे नहीं लगते, असत्पुरूषों का धर्म अच्छा लगता है यह पतनोन्मुख आदमी का दूसरा लक्षण है वह तन्द्रालु होता है उसे गप्प मारना अच्छा लगता है, वह परिश्रमी नहीं होता है सुस्त होता है और क्रोधी होता है - यह पतनोन्मुख का पॉचवा लक्षण है। जो पास में पैसा रखकर भी अपने गत-यौवन वृद्ध माता-पिता का पालन पोषण नहीं करता - यह पतनोन्मुख का चौथा लक्षण है । जो झूठ बोलकर किसी भले आदमी को, किसी श्रमण को वा किसी अन्य साधु को ठगता है  यह पतनोन्मुख का पॉचवा लक्षण है। जिस आदमी को अपने जन्म का, धन्य का, जात का, अभिमान है और अपने सम्बन्धियों से ही दूर दूर रहता है यह पतनोन्मुख आदमी का सांतवा लक्षण है। जो आदमी व्यभिचारी है , शराबी है, जुआरी है और जो कुछ पास है उसे ऐशोआराम में लुटाता है- यह ऑठवा लक्षण है। जो अपनी पत्नी से संन्तुष्ट न रहकर वेश्याओं तथा पर-स्त्रियों के पास जाता है यह भी एक बड़ा लक्षण है । आदमी के पतन के लक्षण के बारे में बताते हुये गौतम बुद्ध ने बताया  कि जो आदमी किसी असंयत फजूल खर्ची आदमी व स्त्री को अधिकारी बना देता है । जो क्षत्रिय अल्प साधन रखते हुये किन्तु बड़ी महत्वाकांक्षा होने के कारण राजा बनने की आकांक्षा रखता है - यह पतनोन्मुख आदमी का बारहवॉ लक्षण है । बुद्ध ने कहा है कि पतन के इन कारणों को जान लें यदि तू इनसे बचा रहेगा तो तू सुरक्षित रहेगा।
भगवान बुद्ध द्वारा बताये गये आज के परिवेश के ढ़ाचे में स्वंय को एकदम सटीक स्थापित करते नजर मिल जायेंगे। पतन की ओर अग्रसर किसी भी व्यक्ति को देख लीजिये वह आगाज से लेकर अंजाम तक यन्हीं लक्षणों से गुजरता है ऐसे में वर्तमान परिवेश में बुद्ध की प्रांसगिकता को ठुकराया नहीं जा सकता । बुद्ध के उपदेश आज भी लोगों को श्रेष्ठ नागरिक बन उच्च जीवन जीने के लिये प्रेरित करने वाले सिद्ध हो रहे है। घड़ी की टिक-टिक करती सुई और वक्त की बढ़ती रफ्तार भी बुद्ध अनुयायीओं को बुद्ध के बतायें विचारों पर चलने का संकेत दे रही है।
गौतम बुद्ध विश्वकल्याण के लिए मैत्री भावना पर बल देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे महावीर स्वामी ने मित्रता के प्रसार की बात कही थी। गौतम बुद्ध मानते हैं कि मैत्री के मोगरों की महक से ही संसार में सद्भाव का सौरभ फैल सकता है। वे कहते हैं कि बैर से बैर कभी नहीं मिटता। अबैर से मैत्री से ही बैर मिटता है। मित्रता ही सनातन नियम है।
वर्तमान हालातों में बुद्ध की प्रांसगिकता को इसलिसे नहीं ठुकराया जा सकता है क्योकि आज के दौर में बैर दिन दुगने रात चौगने अपने पैर पसारता जा रहा है। मैत्री की सुगन्ध दुर्गन्ध में तब्दील होकर सद्भाव में कमी सी आ रही है और अमानवीय, शत्रुता जैसी प्रवृत्ति अपने स्वरूप् को विस्तृत करती जा रही है ऐसे में आज के मानव के लिये गौतम बुद्ध के उपदेश संजीवनी बूटी का कार्य कर सकते है।
जब संसार में सद्भाव और मानवता रहेगी तो निश्चित तौर पर ही संसार सुख समृद्धि के मार्ग उन्नति करेगा और जब संसार अधर्म और कुकृत्य के मार्ग पर रहेगा तो वह पतन की ओर अग्रसर रहेगा। कहा भी गया है कि अच्छे समाज का निर्माण पत्थर और चट्टानों से नहीं होता बल्कि उस समाज के नागरिकों के चरित्र से होता है। और जब एक अच्छे समाज का निर्माण होगा तो जरूर ही एक अच्छे संसार का निर्माण होगा क्योंकि बूंद-बूंद कर घड़ा भरा जा सकता है।
समाज को शुद्ध एवं सभ्य बनाने के लिये बृद्ध ने पंचशील के आचरण का पाठ पढ़ाया है जो आधुनिक हालातों के उपचार के लिये एकदम सटीक दवा के रूप् में उपयुर्क्त नजर आ रही है। शील से अभिप्राय है कि सदाचार और संयम। जिस मनुष्य के पास सदाचार और संयम न हो उस मनुष्य को चरित्रवान कहना एकदम गलत होगा क्योंकि सदाचार और संयम ही मनुष्य का ऐसा गहना है जिसे न कोई चोरी कर सकता है और न कोई छीन सकता है। पंचशील का अनुशरण कर प्रत्येक मानव सुखी एवं सदाचारी बन सकता है। बुद्ध के पंचशील के ये पॉच आचरण आज की आवश्यकता महसूस होते है-
1. मैं ‘व्यर्थ या समुचित कारण के’ जीवन हत्या न करने की शिक्षा पर आचरण करूंगा।
2. मैं अदिन्नाथ बिना किसी की मर्जी के या अनुचित ढंग से कोई वस्तु प्राप्त न करने की शिक्षा पर आचरण करूंगा।
3. मैं काम-वासना तथा अन्य विषय विकारों से दूर रहने की शिक्षा पर आचरण करूंगा।
4. मैं झूठ तथा बकवाद न बोलने की शिक्षा पर आचरण करूंगा।
5. मैं किसी भी प्रकार की नशीली वस्तुओं के सेवन व प्रमाद न करने की शिक्षा पर आचरण करूंगा।

पंचशील के पॉचों सिद्धान्तांं की बारी-बारी से बात करें तो इनकी भरपूर आवश्यकता आज के नागरिकों के लिये अति आवश्यक है। पहले आचरण में कहा गया है कि मैं ‘व्यर्थ या समुचित कारण के’ जीवन हत्या न करने की शिक्षा पर आचरण करूंगा। समाचार पत्र/पत्रिकाओं को निहारा जाये तो शायद ही ऐसा कोई समाचार पत्र/पत्रिका मिलेगी जिसमें हत्या जैसी खबरें न रंगी हो, आज की पीढ़ी इतनी संयमहीन और सदाचार हीन होती जा रही है कि बेवुनियादी बातों के लिये कत्ल जैसी वारदातों को अंजाम देने का कार्य कर रही है। रूपये न देने पर, गाली-गालौज करने पर आदि ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जिनके लिये एक मनुष्य ही दूसरे मनुष्य की जान लेकर किसी मॉ की गोद को सूना कर देता है तो किसी बहिन की कलाई को सूना कर देता है तो किसी की मॉग से सिन्दूर छीन लेता है तो किसी से पिता की छत्रछाया । ऐसे में आज के लोगों को पंचशील का अनुशरण करते स्वंय को मानव बनाने की तरफ प्रेरित करना चाहिये।
पंचशील के द्वितीय आचरण में कहा गया है कि मैं अदिन्नाथ बिना किसी की मर्जी के या अनुचित ढंग से कोई वस्तु प्राप्त न करने की शिक्षा पर आचरण करूंगा। वर्तमान में देखा जाये तो चोरी, लूट की घटनायें आम बात ही हो गई है जो इस आचरण के ठीक विपरीत है और समाज के लिये हानिकारक भी है। तमाम घटोले भी इस आचरण की वर्तमान में जरूरत को बताते नजर आ रहे है।
पंचशील के तृतीय सिद्धान्त में कहा गया है कि मैं काम-वासना तथा अन्य विषय विकारों से दूर रहने की शिक्षा पर आचरण करूंगा। आज के दौर में पुलिसिया रिकॉर्ड को ही प्राथमिकता देते हुये इस बात की खोज की जाये तो आंकड़े शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के साथ सामने आयेंगे। मानवता को काल कोठरी में फेंककर मनुष्य रूपी दैत्य काम वासना की मोहमाया में फंसकर मासूमों की जिन्दगी छीन उनके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने का कृत्य कर रहै है। पश्चात् संस्कृति के नये गर्ल फ्रेण्ड/ बॉय फ्रेण्ड नामक उत्पाद भी पंचशील के इस आचरण का खुला उल्लधंन करते देखे जा सकते है। जिसमें युवा प्रेम रूपी नई बीमारी में फंसकर शादी से पूर्व ही शारीरिक सम्बन्ध बना रहे है जिससे एड्स जैसी समस्यायें भी उत्पन्न हो रही है। ऐसे में पंचशील का यह तीसरा आचरण मनुष्य को मनुष्य बनाने में अहम योगदान प्रदान कर सकता है।
6. पंचशील के चर्तुथ सिद्धान्त में लिखा है कि मैं झूठ तथा बकवाद न बोलने की शिक्षा पर आचरण करूंगा। ग्लैमर की बढ़ती चकाचौंध में झूठ और बकवाद बोलने की एक प्रथा सी सृजित हो गई है। 100 से 99 व्यक्ति इस प्रथा का शिकार हो चुका है। उदाहरण के तौर पर मोबाइल फोन पर ही ऐसे व्यक्ति बेहद ही आसानी से देखने को मिल जा


वर्तमान परिवेश बुद्ध की उपयोगिता बताते हुये प्रसिद्ध लेखक एस. आर. दारापुरी ने भी लिखा है कि आज संसार में हिंसा, धर्मिक उन्माद और नस्लीय टकराव जैसी गंभीर समस्यायों का बोलबाला है. चारों तरफ मानव अस्तित्व को गंभीर खतरे दिखाई दे रहे हैं. एक ओर मानव ने विज्ञान, तकनीकि और यांत्रिकी में विकास एवं उसका उपयोग करके अपार समृद्धि प्राप्त की है, वहीँ दूसरी ओर मानव ने स्वार्थ, लोभ, हिंसा आदि भावनाओं के वशीभूत होकर आपसी कलह, लूट खसूट, अतिक्रमण आदि का अकल्याणकारी और विनाशकारी मार्ग भी अपनाया है. अतः आज की दुनिया में भौतिक सम्पदा के साथ साथ मानव अस्तित्व को भी बचाना आवश्यक हो गया है.

वैसे तो कहा जाता है कि हरेक आदमी अपना कल्याण चाहता है परन्तु व्यवहार में यह पूर्णतया सही नहीं है. यह यथार्थ है कि आदमी अपने कल्याण के साथ साथ अपना नुक्सान भी स्वयं ही करता है जैसा कि आज तक की हुयी तमाम लड़ाईयों, विश्व युद्धों तथा वर्तमान में व्यापत हिन्सा व आपसी टकराहट से प्रमाणित है. अतः आदमी के विनाशकारी विचारों को बदलना और उन पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है. आज से लगभग 2558 वर्ष पहले बुद्ध ने मानवीय प्रवृतियों का विश्लेषण करते हुए कहा था कि मनुष्य का मन ही सभी कर्मों का नियंता है. अतः मानव की गलत प्रवृतियों को नियंत्रित करने के लिए उस के मन में सद विचारों का प्रवाह करके उसे सदमार्ग पर ले जाना आवश्यक है. उन्होंने यह सदमार्ग बौद्ध धम्म के रूप में दिया था. अतः आज मानव-मात्र की कुप्रवृतियों जैसे हिंसा, शत्रुता, द्वेष, लोभ आदि से मुक्ति पाने के लिए बौद्ध धम्म व् बौद्ध दर्शन को अपनाने कि बहुत जरुरत है.

आपसी शत्रुआ के बारे में बुद्ध ने कहा था कि ,” वैर से वैर शांत नहीं होता. अवैर से ही वैर शांत होआ है.” यह सुनहरी सूत्र हमेशा से सार्थक रहा है. डॉ. आंबेडकर ने भी कहा था कि हिंसा द्वारा प्राप्त की गयी जीत स्थायी नहीं होती क्योंकि कि उसे प्रतिहिंसा द्वारा हमेशा पलटे जाने का डर रहता है. अतः वैर को जन्म देने वाले कारकों को बुद्ध ने पहचान कर उनको दूर करने का मार्ग बहुत पहले ही प्रशस्त किया था. उन्होंने मानवमात्र के दुखों को कम करने के लिए पंचशील और अष्टांगिक मार्ग के नैतिक एवं कल्याणकारी जीवन दर्शन का प्रतिपादन किया था. यह ऐतिहासिक तौर पर प्रमाणित है कि बौद्ध काल में जब “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” के बौद्ध मार्ग का शासकों और आम जन द्वारा अनुसरण गया तो वह काल सुख एवं समृधि के कारण भारत के इतिहास का “स्वर्ण युग” कहलाया. उस समय शांति और समृधि फैली. इसके साथ ही दुनिया के जिन देशों में बौद्ध धम्म फैला, उन देशों में भी सुख, शांति तथा समृधि फैली. अतः बौद्ध धम्म का पंचशील और अष्टांगिक मार्ग आज भी विश्व में शांति और कल्याण हेतु बहुत सार्थक है.

यह कहा जाता है कि धर्म आदमी का कल्याण करता है परन्तु व्यवहार में यह देखा गया है यह पूर्णतया सही नहीं है. इतिहास इस बात का गवाह है कि संसार मे जितनी मारकाट धर्म के नाम पर हुयी है उतनी मारकाट अब तक की सभी लड़ाईयों और विश्व युद्धों में नहीं हुयी है. यह सब धार्मिक उन्माद, कट्टरपंथी एवं अपने धर्म को दूसरों पर जबरदस्ती थोपने के कारण हुआ है. धर्म के नाम पर तलवार का इस्तेमाल करने से मानव-मात्र का बहुत नुक्सान हुआ है. यह केवल बौद्ध धम्म ही है जो कि तलवार के बूते पर नहीं बल्कि करुना-मैत्री जैसे सद्गुणों के कर्ण संसार के बड़े भूभाग में फैला और आज भी बड़ी तेजी से फैल रहा है. जहाँ एक ओर दूसरे धर्मों को मानने वालों की संख्या लगातार घट रही है और वे अपने अनुयायिओं क बाँध कर रखने के लिए तरह तरह के हथकंडे व आधुनिक प्रचार तकनीक को अपनाने के लिए बाध्य हो रहे हैं, वहीँ बौद्ध धम्म अपनी नैतिकता एवं सर्व कल्याणकारी शिक्षाओं के कारण स्वतः प्रसारित हो रहा है.

यह सर्वविदित है कि हमारा देश एक जाति प्रधान देश है जिस के कारण हमारी आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा सदियों से सभी मानव अधिकारों से वंचित रहा है और आज भी काफी हद तक वंचित है. यह बुद्ध ही थे जिन्होंने जाति-भेद को समाप्त करने के लिए अपने भिक्खु संघ में पहल की. उन्होंने सुनीत भंगी, उपली नाई तहत अन्य कई तथाकथित निचली जातियों के लोगों को संघ में राजा और राजकुमारों की बराबरी का स्थान दिया जिनमे से कई अर्हत बने. बुद्धा ने ही महिलायों को भिक्खुनी संघ में स्थान देकर नारी पुरुष समानता के सिधांत को मजबूत किया. यद्यपि दास प्रथा तथा जाति भेद पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुआ परन्तु बुद्ध द्वारा वर्ण व्यवस्था तथा उसके धार्मिक आधार पर किया गया प्रहार बहुत कारगर सिद्ध हुआ. डॉ. आंबेडकर ने अपने लेखन में कहा है कि भारत में बौद्ध धम्म का उदय एक क्रांति थी और बाद में ब्राह्मण धर्म कि पुनर्स्थापना एक प्रतिक्रांति थी जिस ने बौद्ध धम्म द्वारा स्थापित सभी मानवीय सामाजिक मूल्यों को पलट कर रख दिया था. फलस्वरूप जाति व्यवस्था एवं ब्राह्मण धर्म को अधिक सख्ती से लागू करने के लिए मनुस्मृति तथा अन्य समृतियों कि रचना करके उन में प्रतिपादित नियमों और विधानों को कठोरता से लागू किया गया.

आज भारत तथा विश्व में जो धार्मिक कट्टरवाद व टकराव दिखाई दे रहा है वह हम सब के लिए बहुत बड़ी चिंता और चुनौती का विषय है. भारत में साम्प्रदायिक दंगों और जातीय जनसंहारों में जितने निर्दोष लोगों की जाने गयी हैं वे भारत द्वारा अब तक लड़ी गयी सभी लड़ाईयों में मारे गए सैनिकों से कहीं अधिक हैं. अतः अगर भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और धर्म निरपेक्षता के संवैधानिक अधिकार को बचाना है तो बौद्ध धम्म के धार्मिक सहिष्णुता, करुणा और मैत्री के सिद्धांतों को अपनाना जरूरी है. आज सांस्कृतिक फासीवाद और हिंदुत्ववाद जैसी विघटनकारी विचारधारा को रोकने के लिए बौद्ध धम्म के मानवतावादी और समतावादी दर्शन को जन जन तक ले जाने की जरुरत है.
दुनिया में धार्मिक टकरावों का एक कारण इन धर्मों को विज्ञानं द्वारा दी जा रही चुनौती भी है. जैसा कि ऊपर अंकित किया गया है कि विभिन्न ईश्वरवादी धर्मों के अनुयायिओं की संख्या कम होती जा रही है क्योंकि वे विज्ञानं की तर्क और परीक्षण वाली कसौटी पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं. अतः वे अपने को बचाए रखने के लिए तरह तरह के प्रलोभनों द्वारा, चमत्कारों का प्रचार एवं अन्य हथकंडों का इस्तेमाल करके अपने अनुयायिओं को बांध कर रखना चाहते हैं. उनमे अपने धर्म की अवैज्ञानिक और अंध-विश्वासी धारणाओं को बदलने की स्वतंत्रता एवं इच्छाशक्ति का नितांत आभाव है. इस के विपरीत बौद्ध धम्म विज्ञानवादी, परिवर्तनशील तथा प्रकृतवादी होने के कारण विज्ञानं के साथ चलने तथा जरूरत पड़ने पर बदलने में सक्षम है. इन्हीं गुणों के कारण डॉ. आंबेडकर ने भविष्यवाणी की थी कि,” यदि भविष्य की दुनियां को धर्म की जरुरत होगी तो इसको केवल बौद्ध धम्म ही पूरा कर सकता है.” उनका भारत को पुनः बौद्ध्मय बनाने का सपना भी था. अतः हम निस्संकोच कह सकते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में बौद्ध धम्म एवं बौद्ध दर्शन पूर्णतया प्रासंगिक है।