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हालातों ने टेक दिए घुटने, पहियों ने भर दी उड़ान.....सुनेंगें जब सच्ची कहानी, तो न होगा यकीन



जी हां, समाज में आज भी ऐसे उदाहरण है जो हौसले और जज्बे को परिभाषित कर रहे है और प्ररेणा दे रहे है कि इंसान अपनी किस्मत खुद लिखता है। अपना भाग्य वह खुद रचता है। वैसे तो वक्त की मार ने अच्छे-अच्छे को हार मानने को मजबूर कर दिया, पर आज जिनकी बात हम कर रहे उन्होंने वक्त के सामने नहीं बल्कि वक्त ने उनके सामने पराजय स्वीकार कर ली है। हम बात कर रहे है प्रतापगढ़ में जन्मे, कल्याणपुर निवासी डा. वाई. पी. सिंह की। जिनके सामने हालातों ने घुटने टेक दिए और पहियों ने भर दी उड़ान......

डा. वाई. पी. सिंह का जीवन संघर्षों भरा रहा वह स्पोर्टस के शौकीन थे। सन् 1994 में खेल के मैदान पर ही समय ने उनकी परीक्षा ली और स्पाइनल कार्ड इंजरी ने उन्हें ताउम्र व्हील चेयर पर रहने को विवश कर दिया। इस कठिन समय में उन्होंने 4 साल अस्पताल में गुजारे इन कठिन परिस्थितियों में गीता के श्लोकों ने उन्हें भरपूर उर्जा दी।  अस्पताल में भर्ती होने के बाद डॉ. सिंह ने वित्त और सूचना प्रौद्योगिकी में दोहरी विशेषज्ञता के साथ प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा में प्रवेश लिया और स्नातकोत्तर डिप्लोमा पूरा करने के बाद उन्होंने वित्त संकाय के रूप में अपना करियर शुरू किया और अपनी सीखने की प्रक्रिया को जारी रखा। जुलाई 2001 में उन्होंने अपना एम.कॉम पूरा किया। और उसी वर्ष उन्होंने लेखांकन सूचना प्रणाली ;एआईएस के क्षेत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय में पीएचडी विद्वान के रूप में दाखिला लिया और एक रिकॉर्ड समय में मई 2004 मेंए उन्हें पीएचडी की उपाधि से सम्मानित किया गया और इस प्रकार साल दर साल डॉ. सिंह ने न केवल वित्त और लेखा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया बल्कि अकादमिक हलकों में भी पहचान हासिल की।

कभी हिम्मत न हारने वाले डा. वाई. पी. सिंह व्हीलचेयर पर रहकर ही विद्यार्थियों को अपनी अनूठी शिक्षण पद्धति से मुकम्मल मंजिल और सही दिशा देने का कार्य कर रहे है एवं आर्थिक मामलों पर कई किताबें भी लिख चुके है इसके साथ ही वह आइआइटी रूड़की जैसे संस्थानों में भी अपने सम्बोधन दे चुके है। राजस्थान के विद्यार्थियों के एक दल ने आकर इनसे विशेष रूप से शिक्षा ली। इसके साथ साथ बिजनेस एवं मीडिया स्कूल आई.आई.एस.ई में भी समय-समय पर विद्यार्थियों को मार्गदर्शित करने काम किया है।

डा. सिंह की निजी जिन्दगी की बात करें तो मौजूदा समय में वह तीन मिंजलें मकान में अकेले रहते है। अपने सफर को आसान बनाने के लिए इन्होंने इनोवेशन और तकनीकि का रास्ता चुना जिसके सहारे खुद ही अपने 3 मिंजला घर के सारे काम करते है। सिर्फ इतना ही नहीं डा. सिंह डाईविंग का भी शौक रखते है और वह 37,000 किमी तक अकेले ही डाइव किए है। गाड़ी चलाने में कोई दिक्कत न हो इसके लिए कार में हैंड ऑपरेटेड सिस्टम लगा रखा है इसमें पैरों के इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही घर पर एक डिवाइस लगा रखी है इसके जरिए रिमोट से ही घर के पंखें वल्ब आदि ऑन ऑफ कर सकते है।

डॉ सिंह ने अपने धैर्य और दृढ़ संकल्प से यह साबित कर दिया कि विकलांगता जीवन में ऊंचाइयों को प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं है। सफलता प्राप्त करने का मुख्य मंत्र लोकप्रिय धारणाओं में विश्वास है, जहां इच्छा होती है, वहां एक रास्ता होता है, और भगवान उन लोगों की मदद करता है जो खुद की मदद करते हैं।

*डा. वाई. पी. सिंह से पारसमणि अग्रवाल की विशेष बातचीत*