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माईबाप.....हम सब उस समाज का हिस्सा है जहॉ खुलकर रोने भी नहीं दिया जाता


जी हम बात कर रहे है उस समाज की जिस समाज के हिस्सा आप भी है, उस समाज की जहॉ स्त्री को तो खुलकर रोने की आजादी है लेकिन पुरूषों को नहीं, हम बात कर रहे उस सामज की जिसके मुॅह में तो सामानता के बड़े-बड़े भाषण है मगर बगल में वही पुरानी सोच। सब छोड़िये हम बात कर रहे पुरूष प्रधान उस समाज की जहॉ पुरूषों को रोना मना है और यदि वो रोते है तो लड़कियों की तरह.....

नवजात शिशु के पास भी रोने की कुदरती कला होती है, हर कोई रोना जानता है इससे सीखने के लिए किसी कॉलेज या मास्साब की जरूरत नहीं पड़ती फिर इसे दुर्भाग्य कहा जाए या विकासशील समाज..जहॉ लोगों को खुलकर रोने की आजादी तक नहीं है। जहॉ नारी घर से लेकर देश तक चला रही वहॉ पुरूषसत्ता पर निशाना साध नारी सशक्तिकरण की बात तो कर ली जाती है सामनता का हवाला भी दे दिया जाता है लेकिन कभी इसके ठीक विपरीत सामनता की बात करने वाले यह देखना उचित नहीं समझते कि हम सब उस समाज का हिस्सा है जहॉ खुलकर रोने भी नहीं दिया जाता। इनकी निगाहों में समानता को लेकर आज भी पुरूष और नारी के बीच गहरी खाई है। पुरूष रोते दिख जाए तो ये ताना जरूर मारा जाएगा कि क्या भाई, लड़कियों की तरह रोते होते ? अरे भाई इस समाज की मानें तो मर्द को दर्द नहीं होता इसलिए लड़कों की तरह रोए तो कैसे रोये ? कितना हास्यपद है न कि मर्द को दर्द नहीं होता और होता है तो वो लड़कियों की तरह रोता है..क्या यही 21 वीं सदी का हमारा श्क्षित समाज है? क्या पुरूष इंसान नहीं है? क्या उसके पास संवेदनाए नहीं है? क्या वो हालातों को नहीं समझता?
बबबबबबससस बहुत हो गया, चुप हो जाइए ........ हजूर .मर्द को भी दर्द होता है क्योंकि वो भी एक प्राणी है