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जरूरी नहीं हर सीनियर रैगिंग लेता हो, कुछ सोचने पर भी मजबूर करते.......




स्वाभाविक सी बात है कि सीनियर का नाम सुन मन में रैगिंग का डर अपना ख्याल ला देता है लेकिन ये जरूरी नहीं कि हर सीनियर रैगिंग ही लेता हो, कुछ सीनियर ऐसे भी होते जो सोचने पर मजबूर कर देते। यूजी तक तो जूनियर सीनियर की परिभाषा से एकदम अनजान था बस रैगिंग के बारे में दीवारों पर पढा था ज्यादा कुछ नहीं जानते थे लेकिन जब शिक्षा के लिए पलायन करके देश के सबसे बड़े सूबे की राजधानी में एक कॉलेज में पहुचा तो सीनियरिटी जूनियरटी के बारे में थोड़ी सी समझ आई लेकिन इस माहौल में न रहने के कारण उस रंग में रंग तो नहीं सका लेकिन इस पहले पड़ाव पर सीनियर ऐसे मिले कि शुरुआती दौर में ही एक लेख लिखने को मजबूर होना पड़ा था कि ‘‘क्या ऐसे ही होते है सीनियर’’ वक्त का पहिया इतनी जल्दी चला कि शिक्षा के लिए पलायन के बाद शहर में पहला पड़ाव था अब वँहा से बिछुड़ कर आगे बढ़ने के लिए कुछ दिन ही बचे है जूनियर भी विदाई पार्टी की तैयारियों में जुट गए है ऐसे में उन सीनियर्स की याद आ ही जाती है जिनकी नसीहत आज जूनियरों को देते है। अपने मन की अपने जहन के जज्बातों को शब्दों में पिरोते हुए उन्हें थेँक्यू कहने की इस श्रृंखला में आज बात कर रहे है अनुप्रिया अग्रहरि मेम की

चंचल सा स्वभाव सूखी लकड़ी जैसी दिखने वाली जितनी पतली उतनी ही स्वभाव की अच्छी जब अनुप्रिया मैम की बात हो तो समझ नहीं आता शुरूआत कहॉ से करें। वैसे मिले तो हम लोग जूनियर -सीनियर के रिश्ते में लेकिन ये रिश्ता महज एक औपचारिकता ही रह गया था क्योंकि हम बन गए थे भाई-बहिन। वह हमें टिड्डा करके बुलाती तो हम उन्हें टिड्डी। वो हमें छोटू कहके बुलाती तो हम छुटकी मैम कह बुलाते थे। यानि कि इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने कम समय में कितने घुल मिल गए थे। कितने मानते थे हमारे सीनियर हमें। मैम का स्नेह और सपोर्ट न सिर्फ कॉलेज तक बल्कि कॉलेज के बाहर होने वाले अन्य ईवेटों में भी मिला जिनमें जाने का मौका मिला चाहे वो अब्दुल कलाम टैक्नीकल विश्वविद्यालय में हो या फिर और कहीं।


आज भी याद आते है वो पल जब बेवजह की बातों पर झगड़ा करते थे आज भी सताते है वो लम्हें जब सोशल मीडिया पर स्पैम करते हुए लगातार हजारों ईमोजी भेज देते थे और आप उन मैसेजों की संख्या का स्क्रीन शॉट लेकर अपने स्टेट्स पर लगा देती थी। याद है वो कहानी भी जब जबरदस्ती जपिंग कराकर वीडियो बना ली गई थी याद है वो किताब जिससे बर्थडे गिफ्त के रूप में आपको पसन्द आई थी लेकिन कुछ कारणों वश अभी तक पैड़िग में है।

लिखना तो बहुत कुछ चाहता पर क्या लिखूं समझ नहीं आता ... गुस्सा होने पर आपकी वो बात आज भी कानों में गूजंती है कि एक बात बोलूं तुम पागल हो....एक साल कब कितनी मौज में निकल गया पता ही नहीं चला आपसब का इतना स्नेह मिला कि किसी बात की फ्रिक ही नहीं थी क्योंकि मेरे रोने वाले या गुस्से वाले इमोजी को मजाक में भेजने पर भी तुरन्त सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती थी।

आपका साथ आपका स्नेह आप जैसा सीनियर मिला हर कदम पर साथ रहा। जल्द ही आप गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने जा रही है तो आपको मंगलमयी शुभकामनाएं और हां भूलना नहीं....भूलना चाहो तो भी नहीं भूलने देगें.........क्योंकि अब हम शरारती जो हो गए है।