Dear Success,
विश्वास है कि तुम नए साथी की खोज कर उससे मित्रता करने के कार्य में कोरोना जैसे वैश्विक संकट काल मे भी पूरी तन्मयता के साथ लगी होगी। लंबे अंतराल के बाद तुमाए लाने पाती लिख रहे तो सबसे पहले पुराने 12 मार्च की चिठ्ठी "डियर सक्सेस ..ख्याल रखना कि तुम ही न हार जाओ।" को थोड़ी निराशा हताशा और बुझे मन से तुम्हें लिखी थी लेकिन तुमने पत्र पर जवाब देते हुये यह साबित कर दिया कि फिलहाल तुम हारने वालों में से नहीं हो। घड़ी की टिक-टिक करती सुई के साथ बदलते वक्त साथ बदलते हालातों में खुद को बदल तुमने नए रास्ते विकसित किए है। देश के ओजस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी सही कहते है कि आपदाएं अवसर लेकर आती है।
प्रिय तुमको तो पता है न कि कोंच की सरजमीं पर कोंच के लिए बड़ा आयोजन करने के लिए लगभग जुलाई 2019 से कोशिशे शुरू कर दी थी तमाम लोगों के सामने सारे तथ्यों के साथ अपनी बात रखी लेकिन नतीजा निराशा जनक निकला हा कुछ ने बातों बातों में हा में हा मिलाई लेकिन पता चला कि उनके लिए हमारा यह प्रयास मखौल के रूप में सृजित हुआ। कंधों पर तुम्हारा हाथ जज्बे और जुनून को कम नहीं होने दे रहा था और इस ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए निरन्तर कोशिश की प्रेरणा मिली। बेहद उठापटक करने और गोटे बिछाने के बाद दिसम्बर आते आते यह उम्मीद जाग उठी कि कोंच के इतिहास में पहली बार हो ऐसे भव्य उत्सव का आयोजन 22-23 मार्च 2020 को प्रस्तावित हुआ।
पता success, यंहा लड़ाई सिर्फ उदासीन समाज से नहीं थी बल्कि समय भी हमारे विपरीत खेमे में खड़ा था। परिस्थितियों ने नया मोड़ लिया पूर्व निर्धारण के अनुसार 2/2/2020 को लखनऊ को बाय बाय कहते हुए मुम्बई की गोद मे जा पहुँचे। इस दौरान खास अनुभव यह मिला कि मुम्बई में रहने वाले अधिकांश परिचित साथी जिसको भी कॉल करे सबके द्वारा बताया गया कि वह आउट ऑफ मुम्बई है, हालांकि कुछ साथी ने मित्र धर्म निभाया। दो-चार दिन में ही यह अहसास हुआ कि 22-23 मार्च को प्रस्तावित फ़िल्म फेस्टिवल को आगे के लिए स्थागित करना पड़ेगा। कारण फिर कभी बताऊंगा परिस्थितियों को संभालने की कोशिश की लेकिन एकला चले होने और कारवाँ न जोड़ पाने में असमर्थता के कारण आखिरकार कोरोना, परीक्षाओं एवं अपरिहार्य कारणों का हवाला देते हुए खुद को इस आयोजन से पीछे खींचते हुए स्थागित का समाचार मीडिया को देना पड़ा। अब तक मुम्बई के टीवी चैनल में जॉब मिल चुकी थी तो दिन रात लोकल ट्रेन से भागदौड़ सार्थक नजर आई और हौसले में वृद्धि हुई। न्यूज चैनल जॉइन करने के तीसरे दिन ही तारक मेहता सीरियल में साउंड डिपार्टमेंट में काम मिल गया। बड़े सीरियल से टीवी जगत में शुरुआत एक नई जोश लेकर आई। चूंकि न्यूज़ का तीन दिन पहले ही जॉइन किया था ऐसी स्थिति में दिन में न्यूज़ ऑफिस और रात को फ़िल्म सिटी उस टाइम होली की शूटिंग चल रही थी तो नाइट शिफ्ट के वजह के ये मैनेज होता रहा। इसी दौरान एक फ़िल्म भीमा कोरेगांव में भी अभिनय का अवसर मिला इस बीच में फिर से कोंच फ़िल्म फेस्टिवल को यथा समय कराने के कुछ रास्ते खुले नजर आए। लेकिन मार्च आते ड्रीम प्रोजेक्ट कोंच फ़िल्म फेस्टिवल कोरन्टीन हो चुका था। कंही न कंही मन मे इस बात के साथ एक निराशा की किरण घर कर गई थी कि इस वर्ष तो यह आयोजन अब मुमकिन नहीं।
Success तुम्हारी निगाह तो हमेशा हम पर ही थी तुम्हें पता होगा कि आयोजन कैंसिल होने के बाद भी मेरा पूरा दिलों दिमाग उसी आयोजन में समाहित था, मन में यही विचार मंथन चलता रहता था कि कैसे लोगों को समझाए कि कोंच जैसी छोटी जगह बड़ा समारोह मुमकिन है कैसे क्या करूँ। चंचल मन की यह हलचल एक दिन हमें उस पड़ाव पर लाकर खड़ी कर देती है जंहा अपने इस फेस्टिवल के लिए की गई मेहनत को सिद्ध करने की चुनौती होती है, जंहा लोगों के डिजिटल साथ की उम्मीद होती है जंहा नींव रखी जानी थी एक ऐसे अद्भुत आयोजन की जंहा दर्शक तो होते है लेकिन अप्रत्यक्ष । इंटरनेट आदि की चुनौतियां, साथ ही साथ हॉट स्पॉट में आ जाने के कारण घर से बाहर न निकलने की विवशता यानि कि हालात हो गए थे अपने ही लिखे लेख कमरा कैमरा और क्रिटवेटी की डिजिटल परीक्षा का। रीति नीति और रणनीति पर मनन करने के बाद इस चैलेंज को स्वीकार कर लिया और घोषणा कर दी कि कोरोना संकट को देखते हुए कोंच फ़िल्म फेस्टिवल भी अपने स्वरूप को बदलेगा अब कोंच फ़िल्म फेस्टिवल बन गया था ऑनलाइन कोंच फ़िल्म फेस्टिवल।
कुछ कदम इस आयोजन को लेकर आगे आये ही थे कि हमारे पास फिल्में आ गई दो अन्य देश की। यानी कि अब हमारा आयोजन इंटरनेशनल वे पर चल चुका था महज एक सप्ताह के अंदर ही हमें 5 देशों से फिल्में मिल चुकी थी। एक कमरे में अकेले बैठ कर यह आयोजन करने वाले मुझ जैसे नाचीज के लिए बड़ी बात थी। मन में एक कसक थी कि प्रतिभाओं के नाम पर दुकानें जगह जगह खुल चुकी ऐसे में शहर सिनेमा और गांव कस्बों की प्रतिभाओं के बीच दूरियों को कम करते हुए एक मंच पर लाया जाए हम अपने इस प्रयास में भी सार्थक हुए देश के कई शहरों के साथ साथ विदेशों से भी 147 प्रतिभाओं को जुगाड़ू मंच की परिकल्पना कर उन्हें इस आयोजन की सहभागिता प्रदान की। बात मनोरंजन तक ही सिमट के न रह जाये इसलिए हमने ऐसे विषय विशेषज्ञों के सेशन भी रखे जो लोगों के लिए उपयोगी साबित हो। अब तक इस अकेले पारस के साथ अप्रत्यक्ष 1500 लोग कोंच फ़िल्म फेस्टिवल में अपना योगदान अप्रत्यक्ष रूप से देने लगे थे जिसके परिणाम स्वरूप तीन दिन का यह आयोजन 5 दिन का हुआ और एक दिन का सम्मान समारोह तीन दिन का हुआ। इस दौरान कुछ अनुभवों ने पीड़ा भी पहुचाई तो कुछ अनुभव सुखद रहे।
प्रिय सक्सेस..कोरोना काल मे डिजटल पटल की उपयोगिता लोगों के समझ आई है । साथ ही ऐसी प्रतिभाओं के लिए भी एक अवसर लाई है जो संसाधन अर्थ या अन्य किसी कारण वश अपनी प्रतिभा के लिए देहरी को लांघने में अक्षम है। खैर बातें तो बहुत सारी है अन्य बाते बाद मे अपना ख्याल रखना और हा success तुम हारना मत..चलते रहो चलते रहो।
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