एक अकेला सबका प्यारा
इन्सान से बेहतर ज़िन्दगी जीता जो जो
दूसरी तरफ कुत्ते से बदतर ज़िन्दगी जीता इन्सान
कभी भारी पड़ता कुत्ते को कुत्ता कहना
कभी माँ की डाँट में उसे कुत्ता गधा बनना
कभी मालकिन की फुफकार में कि तुम कुत्ता हो
डाँट मिलती उसके लिए जिसकी-चाटने काटने का एक असर
वही दोनों का दो असर लिये इंसान
वक़्त इन्सान को इन्सान से अलग कराता
वक़्त के साथ खाली पेट कुत्ते को दूध,
रोटी हाथ में लिये दौड़ता
पुचकारता जिकरने का प्रयास करता
मालिक के सामने अपने बेटे से बढ़कर सँवारता
इन्सान वक़्त को देखता सहता चका जाता
अन्त से अनन्त तक अनन्त से अनादे तक
वक़्त की मार झेलते हुये
अभिशाप सिर्फ़ गरीबी का लिये मृत्यु तक
- अनिल कुमार यादव ‘‘अकेला’’
#anil_akela
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