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तत्कालीन सपा सरकार की गलती सुधार सीएम योगी रच सकते है इतिहास



सियासत का ऊॅट वक्त और परिस्थितियों की चाल के अनुसार खुद की करवटों को बदलता है और जिस व्यक्ति ने सियाशी हवाओं के रूख को भांपते हुए विपक्ष की कमजोरी को आधार बना अपने पांसे समय पर फेंक दिया राजनीति में वही मुकद्दर का सिंकदर बन जाता है। कोरोना संकट से गुजर रहे देश में राजनीति परवान चढ़ी हुई है। खासकर उत्तर प्रदेश की राजनीति प्रवासी मजदूरों के साथ कांग्रेस के बसों पर सवारी कर रही है। कोरोना संकट के सियाशी युद्ध में किसको कितना फायदा होता है ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि आगामी समय सूबे की योगी सरकार के लिए बेहद चुनौतियों पूर्ण है। लाखों की संख्या में वापस लौट रहे मजदूरों को अपने ही सूबे में जीवन यापन के लिए रोजगार उपलब्घ कराना सरकार के लिए बड़ा इम्तिहान है।
 मीडिया के हवाले से मिले सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के आंकड़े कहते है कि कोरोना संकट के बीच देश में बेरोजगारी दर 27.11 प्रतिशत पहॅुची है जबकि यूपी में बेरोजगारी दर 21.5 प्रतिशत हो गई। ऐसे हालातों की बीच मजदूरों को रोजगार देने में सरकार द्वारा उठाए गए कदम क्या समस्या निराकरण में सक्षम साबित होगें ? सम्भवतः कई जहनों में सृजित यह सवाल उत्तर की तलाश में है क्योंकि सम्भावना जताई जा रही है कि कोरोना संकट के वजह से वापस आए लाखों मजदूरों को समय से जीविकोपार्जन के लिए रोजगार नहीं मिला तो चोरी लूट जैसे अन्य संगीन अपराधों में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
 इन्हीं सब के बीच समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार की गलती को सुधार वर्तमान की योगी नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार बेरोजगारी की समस्या से निजात पाने में राहत पा सकती है साथ ही युवाहितैषी सरकार बनने के साथ-साथ बेरोजगारी के आंकड़ों को निचले सतह पर ला इतिहास भी रच सकती है। आपको याद है न समाजवादी पार्टी सरकार की बेरोजगारी भत्ता योजना।
जी वही बेरोजगारी भत्ता योजना जिसका जिक्र समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में किया था और सरकार बनने के बाद उसको लागू किया था। भत्ता पाने की चाह ने सेवायोजन कर्यालय पर लम्बी कतारें लगवा दी थी और इन लाइनों में ऐसे भी युवा मौजूद थे जो स्वरोजगार से जुड़ने होने के वाबजूद भत्ता की चाह में सरकारी कागजातों में खुद को बेरोजगार दर्शाने के लिए सेवा योजन कर्यालय के बाहर लगी पंजीकरण लाइनों में खड़े थे। इससे बेरोजगारो के हक पर डाका डालने की कोशिश होती तो दिखी साथ ही सरकारी दस्तावेजों में बेरोजगारी के आंकड़ों में उछाल आ गया था।
यूपी में भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता पर काबिज होने के बाद अखिलेश यादव की बेरोजगारी भत्ता योजना को जुलाई 2018 में यह कहते हुए बंद कर दिया था कि मौजूदा समय में अप्रासंगिक होने के कारण इस योजना को बंद कर दिया गया है।
लेकिन वर्तमान कोरोना समय के देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस योजना के नाम और नीति में परिर्वतन कर इसे बेरोजगारी भत्ता से बदल नव स्वरोजगारी भत्ता के नाम से पुनः संचालित कर दिया जाए तो स्वाभाविक सी बात है कि स्वरोजगार से जुड़ चुके एवं स्वरोजगार के लिए खुद को प्रेरित करने वाले युवाओं का हौसला बढ़ेगा और वह बेरोजगारों की लिस्ट में से अपना नाम कटवाते हुए स्वरोजगार युवाओं की लाइन में खड़ा दिखेगा। इससे स्वरोजगार के प्रति लोगों को प्ररेणा मिलने के साथ-साथ बेरोजगारों के हक पर डाका डालने के प्रयास को भी नाकाम किया जा सकता है जिससे सरकार के पास बेरोजगारों का मिलावटी आंकड़ा होने के वजाय सही आंकड़ा होगा और जब आंकड़े सही होगें तो बेरोजगारी की बखेड़िया उधाड़ने वाली योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में मजबूती मिलेगी।

पारसमणि अग्रवाल