सपना
निदिया रानी ने मुझे जैसे ही सुलाया
तभी अचानक एक सपना आया
अब तक का ये
बहुत ही अलग सा सपना था
अंधेरे में वो दिखा तो नही
पर कोई अपना था
खुले हुए लंबे बाल
सुंदर सी ओढ़े खाल
नशीले से दो नैन
और
गुलाबी से गाल
फैली हुई बांहे
मानो तो गले लगा लेना चाहती थी
हमेशा हमेशा के लिए
जैसे मुझे अपना लेना चाहती थी
और
उसकी मंद मंद मुस्कान
तो दिल पर यूं तीर चला रहे थे
जैसे प्रेम का रस घोल
दिल दिमाग को अपना बना रहे थे
ऐसा लग रहा था जैसे
मोहब्बत के नगाड़े बजा रहे थे
ख़्वाब में देख ख़्वाब को
हम भी ख्वाब सजा रहे थे
तभी अचानक से
तभी अचानक से
हवा का झोखा
खिड़कियों से टकराया।
शांति को चीर
एक मंद कोहराम आया।
कोहराम सुन
मैं तुरंत निद्रावस्था से जागा
सपने को हकीकत मान
इधर उधर भागा
पर कोई भी न पास था
सिर्फ यही अहसास था
कि वो नही अपना था
वह सिर्फ सपना था
सपना था!
©Parasmani Agrawal
0 टिप्पणियाँ