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चाहिये था रोजगार, मिली बेरोजगारी

जी हाँ, "चाहिये था रोजगार मिली बेरोजगारी" ये किसी हास्यपद व्यंग की पंक्तिया नहीँ है बल्कि ये एक ऐसी कड़वी हकीकत है जिसे सामाजिक परिदृश्य में बड़े ही आराम से देखने को मिल जायेगा। आप सभी जागरूक पाठकों के संज्ञान में यह बात जरूर संज्ञान में होगी कि आधुनिक परिवेश में भारत में व्याप्त मुख्य समस्याओं में बेरोजगारी भी बड़े शान से अपना नाम सम्मिलित कराये हुये है। युवा देश कहलाने वाले भारत के युवा ही समस्याओं की मेढ़ पर बेदम पड़े होकर अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रहे है और साथ ही दुर्भाग्य और बिडम्बना यह भी है कि युवा हितैषी होने का स्वांग रच युवाहितो में कदम उठाने के बजाय युवाओं के घाव को कुदरने का कार्य बड़े ही सरलता पूर्वक किया जा रहा है। बड़े-बड़े सफेद पोशों द्वारा बड़े-बड़े मंच पर की गई बड़ी-बड़ी बातें सिर्फ और सिर्फ चुनावी जुमले की पोशाक धारण कर मीडिया की सुर्खिया बनके रह जाती है यदि पूर्ण ईमानदारी के साथ युवा हितैषी इन बयानबाजी का सर्वेक्षण कराया जाये तो वास्तविकता निःसन्देह उजागर हो जायेगी। हमारे जिम्मेदार हमारी सरकारें आम के आम गुठलियों के दाम को अपना आदर्श मानते हुये युवाओं को वशीभूत करते हुये उनके घावों पर नमक छिड़कने का कार्य कर रही है। कुछ दिनों पूर्व एक राज्य सरकार द्वारा युवाहितो में एक योजना अमल में लाई गयी थी हालांकि इस योजना को कुछ समय तक ही संचालित हो सकी। उस राज्य की "बेरोजगारी भत्ता" का यदि धरातल पर अध्ययन करें तो यह योजना युवाओं की समस्या को कम करने के बजाय अमृत प्रदान करने का कार्य कर रही थी। माना कि बेरोजगारी भत्ता द्वारा युवाओं को कुछ हजार रुपये मासिक राशि आवंटन की जाती थी जो ऊपरी तौर पर जरूर युवाहित प्रदर्शित करती है लेकिन इसी के दूसरे अनछुए पहलू पर नजर डाले तो फलस्वरूप यह सामने निकल कर आएगा कि बेरोजगारी की दिशा में योजना लागू होने के बाबजूद बेरोजगारों की संख्या में गिरावट होने के बजाय  सेवा योजना कार्यालयों में बेरोजगारी की संख्या दिन दूगनी रात चौगनी बढ़ती गई क्योंकि आधुनिक परिवेश अर्थ के मायाजाल में जकड़ा हुआ है। बेरोजगारी भत्ता की चाहत ने स्वरोजगार अपनाये युवाओं को भी वशीभूत करते हुये स्वम् को बेरोजगारों की लाइन में खड़े करने को मजबूर है। यदि सरकार वास्तव में युवाहितो को लेकर गम्भीर होती तो वह बेरोजगारी भत्ता के रूप में नकारात्मक कदम न उठाकर स्वरोजगारी भत्ता जैसी सकारात्मक कदम उठाती। जिसके फलस्वरूप स्वरोजगार अपनाये युवाओं को प्रोत्साहन तो मिलता ही साथ ही बेरोजगारी की झेल रहे युवा भी स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ा अपने को मजबूत करते । जिससे बेरोजगारी दर में एक भारी गिरावट देखने को मिल सकती थी लेकिन वर्तमान सरकारें व राजनैतिक पार्टिया युवाओं को सबसे बड़े वोट बैंक के रूप में देखती है इसलिये वह युवा रूपी इस वोट बैंक की समस्याओं का निराकरण कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने से परहेज कर रही है।

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