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प्रथम कोंच हिन्दी सहित्य उत्सव- एक अधूरा प्रयास

बड़े शहरों की भाँति जिला-जालौन के कस्बे कोंच में आयोजित तीन दिवसीय प्रथम कोंच हिन्दी साहित्योत्सव एक अधूरे प्रयास के रूप में अपनी छवि बनाते हुये दिखाई दे रहा है। भले ही साहित्योत्सव के आमन्त्रण पत्र पर आयोजन समिति, कार्यशाला समिति, स्वागत समिति, अध्यक्ष मण्डल, सदस्यगण आदि के रूप में प्रकाशित नामों की एक लम्बी लिस्ट के अधिकांश लोगों के द्वारा सिर्फ अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना ही नहीँ बल्कि साहित्योत्सव से नदारत रहना आयोजक मण्डल पर प्रश्नचिन्ह लगाने का काम कर रहा है।
हास्यपद बात तो यह है कि कार्यशाला समिति के सदस्य द्वारा ही अपने पद की गरिमा गिराते हुये कार्यशाला में एक प्रतिभागी के तौर पर तीनों दिन आयोजित हुई प्रतियोगिता में सहभागिता करना अन्य नवोदित साहित्यकारों का गला घोटने जैसा है। साहित्योत्सव के मुख्य आयोजक मण्डल पर यँहा एक सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर ऐसा क्या कारण रहा कि कार्यशाला में प्रतिभाग किये एक प्रतिभागी को कार्यशाला समिति का सदस्य बनाना पड़ा? हालांकि एक सवाल यँहा मेरे ऊपर भी उठता प्रतीत हो रहा है कि आयोजन संस्था के सदस्य होते हुये भी मैने क्यों कार्यशाला में सहभागिता की और कार्यशाला शुल्क का निर्वाहन किया ? क्या कार्यशाला में प्रशिक्षण देने के लिये बच्चों का आभाव था या फिर किसी का दबाव ?
खेर, इन सब बातों को छोड़कर बात उत्सव की जाये तो तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में दूरदराज से पधारे साहित्य प्रेमियों की संख्या ज्यादा और स्थानीय लोगों की संख्या ऊँट के मुँह में जीरा साबित हुई इस विषय पर चिंतन कर मै यही हल पाता हूँ कि कोंच नगर में हिन्दी प्रेमियों की संख्या काफी अच्छी है लेकिन समारोह के जिम्मेदारों द्वारा लोगों से संवाद की कमी एवं लोगों तक जानकारी पहुँचाने का आभाव कार्यक्रम की रीढ़ तोड़ता नजर आया। साथ ही जिम्मेदार पद पर बैठे एक व्यक्ति द्वारा बोली जाने वाली नादानी पूर्ण भाषा कार्यक्रम पर बट्टा लगाने का कार्य कर रही है।
जँहा एक ओर नगर में अच्छी संख्या में साहित्य लेखकों की मौजूदगी नगर के लिये गौरव की बात है वहीँ दूसरी ओर स्थानीय रचनाकारों द्वारा गुटबाजी एवं वर्चस्व का खेल कोंच के साहित्यिक वातावरण को गतिहीन कर ही रहा है। साथ ही प्रथम कोंच हिन्दी साहित्योत्सव जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से नगर के बाहर साहित्यिक पटल पर गलत सन्देश पहुँचाने का काम दिनों दिन सफलता के शिखर पर पहुँचता जा रहा है। परिणाम स्वरूप इस गुटबाजी के बीच नवोदित रचनाकार पिस रहे है जिससे उनकी रचनाएँ डायरी के पन्नों के बीच में दफन रहने को मजबूर है।
सभागार में स्थानीय वाशिंदों की गैर हाजिरी के विषय में अनुभवी लोग बताते है कि आधुनिक समय में मनुष्य काफी व्यस्त हो गया है अपनी व्यस्ताओं से यदि कोई व्यक्ति साहित्योत्सव के लिये समय निकालने की सोचता है और कार्यक्रम में पहुँचता है और वँहा अपने समय से काफी विलम्ब से आयोजित कार्यक्रम में महज अंगुलियों पर गिनी जाने वाली उपस्थिति देखकर निराश होकर वापस लौट आता है। वही इस पर प्रतिक्रिया देते हुए एक समाजसेवी भी कहते है कि संस्था द्वारा कार्यक्रम का आयोजन गलत समय पर किया गया जिन तिथियों में कार्यक्रम आयोजित हुआ उन तिथियों में अच्छी सारग थी साथ ही बची कुची कसर संस्था के लोगों द्वारा आमन्त्रण के नाम पर महज दिखावा कर औपचारिकता की भेंट चढ़ गई। यदि यँहा बात कार्यशाला और उसमें प्रतिभाग कर रहे कोंच नगर के साहित्य रत्नों की न हो तो सम्भवतः यह समीक्षा अधूरी साबित होगी। प्रतिदिन अलग-अलग विधाओं पर आयोजित हुई कार्यशाला में स्थानीय साहित्य के रत्नों ने काफी उत्साह के साथ गुर सीखे और कार्यशाला के अंत में होने वाली प्रतियोगिता में भी भागीदारी की यह सिलसिला तीनों दिन चलता रहा। तीसरे सायंकाल जब परिणाम आने का वक्त हुआ तो पता चला कि अब प्रतियोगिता का न ही परिणाम आएगा और न ही विजेताओं का सम्मान होगा जबकि कार्यशाला प्रशिक्षक द्वारा प्रतिदिन रचनाओं का मूल्यांकन किया गया परिणाम आने की 3 दिन से राह देख रहे प्रतिभागियों को सिर्फ और सिर्फ हताशा मिली और आयोजक मण्डल एक और प्रश्नचिन्ह का शिकार होता नजर आया कि क्या कार्यक्रम के पूर्व सर्वसम्मिति से तय नहीँ की गई थी मुझे लगता है कि तीन दिवसीय यह कार्यशाला नगर की प्रतिभाओं का उत्साहवर्धन नहीँ उत्साहमर्दन करने में सहायक सिद्ध हुयी।

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