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प्रचार के नए रिवाज हो गये

अनोखे अब आगाज़ हो गए।
प्रचार के नए रिवाज हो गए।
करके मर्यादा की हत्या
सुर्खियों में फिर आज हो गए।
झोंक कर देश को दंगे की आग में
टी0आर0पी0 के ताज हो गए।

पारसमणि अग्रवाल

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