(1) दीपक बन तुम्हें प्रकाश फैलाना है।
तूफानों से लड़कर मंजिल पाना है।
देकर लाख इम्तिहान आँधियो को,
मंजिल पर अपना ध्वज लहराना है।
(2) शिक्षा के मन्दिर नीलाम हो गए।
बेरोजगार युवा अब आम हो गए।
समय तूने भी क्या करवट बदली,
इंसान माया के गुलाम हो गए।
(3) नादान हूँ मेरी गलती माफ़ करो।
खाली घट हूँ ज्ञान का माँ प्रकाश भरो।
दे आशीष मंजिल पर विजय दिलाने की
लक्ष्य को भेदू ऐसा माँ उत्साह भरो।
(4) ईश्वर से भी बड़ा माना जाता है गुरु।
मार्ग सफलता के दिखाता है गुरु।
मत छोड़ना "पारस" साथ गुरु का,
जीवन की नैय्या पार लगाता है गुरु।
(5) मरते सब है जीना भी सीखो।
दुःखो को पीना भी सीखो।
मस्ती के आलम में रहकर,
खस्ता दामन सीना सीखो।
-पारसमणि अग्रवाल
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