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नारी विमर्श पर दूषित मानसिकता का है साम्राज्य

नारी विमर्श पर दूषित मानसिकता का है साम्राज्य।
जी हां, हैडिंग देखकर जरूर आप चौंक गए होंगे लेकिन गहराई से चिंतन करने पर हकीकत यही सामने आती है कि नारी विमर्श के नाम पर किये जा रहे साहित्य सृजन में रटे रटाये पैटर्न को दृष्टिगत रखते हुये सृजन किया जा रहा है। अभी तक मेरी नजर से गुजरी हुई नारी विमर्श से ओत-प्रोत रचनाओं में अधिकांश साहित्यकारों द्वारा नारी के पात्र को अबला दिखाया गया है और आज के साहित्यकार भी अपने सृजन में नारी का वही रटारटाया पात्र प्रस्तुत कर रहे है जो आज से कई दशकों पूर्व से किया जाता रहा है। नारी विमर्श पर आधारित रचनाओं में दशकों से लिखी जा रही नारी की दशा का चित्रण आज के लेखन में भी होना अभी तक नारी विमर्श पर किये गए साहित्य सृजन पर सवालिया निशान खड़े करने का काम कर रहा है कि एक लंबे फलांग से नारी की उसी दशा को मुख्य बिंदु बनाकर सृजन होने पर क्या यह समझा जाये कि अभी तक नारी विमर्श पर लिखी गई रचनाएँ जागरूकता का ग्राफ बढ़ाने में नाकाम रही तभी तो वर्षो से उसी रटे रटाये फॉर्मूले पर नारी विमर्श को घसीटने का काम किया जा रहा है।
या फिर ये माना जाये कि नारी विमर्श पर अपनी कलम चलाने वाले साहित्यकारों के एक बड़े वर्ग में ऐसे भी दूषित मानसिकता से ओत-प्रोत साहित्यकारों का वर्चस्व है, जो नारी विमर्श के नाम पर खुद की पीठ तो थपथपाना चाहते है लेकिन नारी उत्थान की बात उन्हें बदहजमी की शिकायत कर देती है तभी तो अभी तक लिखी गई नारी विमर्श पर रचनाओं में नारी को अबला ही साबित करने का कार्य बखूबी किया जा रहा है। अभी तक साहित्य से बड़ा नाता रखने का ढोंग करने वाले कुछ तथाकथित लोगों द्वारा मेरी रचनाओं पर नकारात्मक सोच से लिखने के साथ तमाम आरोप लगाए गए है लेकिन आप सभी पाठकों के प्यार व आशीर्वाद से हमारी कलम को ताकत और मजबूती के साथ निरन्तर लिखने का साहस प्राप्त होता है। इस पोस्ट के बाद ऐसे ही कुछ दूषित मानसिकता के लोगों द्वारा इन आरोपो को ही पुनः कुदेरा जा सकता है लेकिन मुझे इस सब की परवाह नही क्योंकि यदि सत्य कहना अपराध है तो मै अपराधी हूँ।
खैर, इन सब बातों को छोड़ पुनः मुद्दे पर आते है। मेरा मानना है कि किसी भी विषय की वास्तविक और निष्पक्ष पड़ताल करने के लिये उस विषय के दोनों पहलुओं पर मंथन और अध्ययन करने की जरूरत होती है सभी निष्पक्ष और सारगर्भित हल तक पहुँच पाते है। लेकिन इसे दुर्भाग्य कहा जाये या स्त्री विमर्श की बिडम्बना कि अभी तक नारी विमर्श के नाम पर हमारे साहित्यकार बन्धुओं ने सिर्फ एकतरफा स्थिति का अवलोकन कर अपनी सम्वेदनाओं को जन्म दिया है लेकिन बदलते परिवेश और नारी की दशा एवं दिशा में हो रहे ऐतिहासिक परिवर्तन को भी नजर रखते हुये नारी विमर्श पर आधुनिक परिवेश की नारी कितनी अबला है कितनी सबला है दोनों तथ्यों पर विचार कर नारी विमर्श पर किया गया सृजन निष्पक्ष और सारगर्भित सृजन होगा जो नारी की स्थिति का काल्पनिक नही बल्कि वास्तविक चित्रण करती हुई प्रतीत होगी। इस विमर्श पर सकारात्मक और नकारात्मक पहलू के साथ लेखन करने से एक ओर जँहा हमारा समाज जमीनी हकीकत से रु-ब-रु होगा तो दूसरी ओर नारी के उत्थान से परिपूर्ण ऐसी रचनाएँ जो नारी को अबला नही सबला बताती हो को पढ़कर नारियों के अन्दर आत्मविश्वास जगाने के साथ-साथ उन्हें अपने अधिकार,सम्मान स्वाभिमान के लिये आगे आने के लिये प्रेरित करेगी। दूषित मानसिकता के साथ नारी विमर्श का वही पुराना राग अलापना बन्द करना होगा क्योंकि यदि स्थिति का परीक्षण किया जाये तो नारियों के उत्थान में निरन्तर वृद्धि हो रही है क्योंकि भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर भी महिला अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। गुलाबी गैग,ग्रीन गैंग जैसे संगठन का होना इस बात का अहसास करा रहा है कि नारी विमर्श को लेकर अब रटारटाया रवैया छोड़कर आधुनिक तथ्यों के साथ अपनी कलम चलायें।