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पर्दे के पीछे रची जा रही विस चुनाव की रणनीति ?

पर्दे के पीछे रची जा रही विस चुनाव की रणनीति ?

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पारसमणि अग्रवाल

समाजवादी पार्टी में बीते कई दिनों से चल रहा आपसी कलह सुलझने का नाम नही ले रहा है। सपा के सियाशी संग्राम में कई मोड़ देखने को मिले जँहा गुटबाजी का खाका स्पष्ट रूप से खिंचता नजर आया।
दिलचस्प बात तो यह है कि कलह के दोनों पक्ष एक ही घर के है बात मुख्यतः चाचा, भतीजा और पिता के बीच फँसी हुई है ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब दोनों पक्ष एक ही घर के है तो मतभेदों को घर की चारदीवारी के भीतर ही क्यों दूर नहीं किया जा सका ? आखिर ऐसा क्या कारण रहा कि आपसी सियाशी कलह को घर की चारदीवारी लांघने को मजबूर होना पड़ा? और उस कलह को प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक सुर्खियों में लाने की स्क्रिप्ट रची गई। कंही ऐसा तो नहीं उत्तर प्रदेश की जनता जो देख रही है वो सिर्फ एक सियाशी ड्रामा और आँखों का धोखा हो क्योंकि राजनीति में सब सम्भव है। वैसे भी हाथी के दाँत दिखाने के और खाने के और होते है।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव नजदीक है ऐसे में सभी पार्टियां अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुटी हुई है। सपा का यह सियाशी कलह कंही विधानसभा चुनाव की तैयारियों का एक हिस्सा तो नहीं है ? जिसके सहारे पर्दे के पीछे विधानसभा चुनाव की रणनीति रची जा रही हो क्योंकि जब से समाजवादी पार्टी में यह घरेलू झगड़ा छिड़ा वह प्रिंट,सोशल और इलेट्रॉनिक मीडिया पर सुर्खियों में रहकर टी.आर.पी. बटोरने का काम कर रही है। साथ ही इस संग्राम के बहाने सपा आम जन मानस के बीच चर्चा का विषय बन गई है जिससे चौराहों , होटलों, ढाबा आदि सार्वजनिक जगहों पर बैठे लोगों के बीच आराम से सुनने को मिल जायेगा जिसमें अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार की समीक्षा के साथ - साथ अखिलेश और शिवपाल की कार्यशैली को भी चर्चा में स्थान मिलता दिखाई दे रहा है। कई दिनों से मचे इस भीषण संग्राम में जँहा विरोधी टीका-टिप्पणी करने से नहीं चूक रहे है और समाजवादी पार्टी को विस चुनाव की लड़ाई से बाहर बता रहे है।
लेकिन पार्टी विशेष मानसिकता से बाहर निकलकर गौर किया जाये तो सपा की इस अंदरूनी लड़ाई से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सीधा फायदा मिल रहा है। बात चाहे कौमी एकता दल के विलय के विरोध की करें या फिर गायत्री प्रजापति के निष्कासन की या फिर घरेलू सियाशी संग्राम के अन्य पड़ावों की। सभी में अखिलेश यादव हीरो के रूप में दिखाई पड़ रहे है जो एक साफ , स्वच्छ , ईमानदार के साथ-साथ मजबूर से मजबूत नेता के रूप में उभर रहे है। जो अखिलेश की लोकप्रियता बढ़ाने में अहम किरदार निभा रहा है। खास बात तो यह भी है कि दोनों गुटों (अखिलेश और शिवपाल) के समर्थक प्रदर्शन आदि करने में लगे हुये है। टी.वी. चैनलो की माने तो अखिलेश समर्थकों की भीड़ शिवपाल के समर्थकों के मुताबिक ज्यादा देखने को मिल रही है। दोनों गुटों को लेकर समाजवादी पक्षधर युवाओं और लोगों से बात की तो उनका दो टूक में जबाव सुनने को मिला कि सपा में हम अखिलेश के साथ है।
कयास यह लगाये जा रहे है कि संग्राम के बहाने पर्दे के पीछे से विधानसभा चुनाव की रणनीति तैयार की जा रही है और योजनानुसार सियाशी संग्राम के बहाने जनता के बीच अखिलेश की एक साफ छवि बनाने का कार्य किया जा रहा है और चुनावी बिगुल बजते ही इस संग्राम का द एन्ड कर अखिलेश को मुख्य भूमिका में विधानसभा के चुनाव में उतारा जाएगा जिससे वह अपनी छवि के दम पर वोट बैंक पाने के साथ-साथ सिम्पेथी के रूप में भी वोट पाने में कामयाब होंगे। खैर, ये वक्त ही बता पायेगा कि ये ड्रामा असल है या फिर चुनावी।

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