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तुलसीदास के प्रिय राम



संवत 1956 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन जन्में हिन्दी साहित्य के महान कवि तुलसीदास के जीवन पर राम का प्रभाव बचपन से था कहा जाता है कि जन्म के समय गोस्वामी तुलसीदास रोये नहीं बल्कि उनके मुॅह से ‘‘राम’’ निकला साथ ही उनके 32 दॉत थे। सिर्फ राम शब्द से जुड़ा प्रतीत हो रहा है किसी अनिष्ट की आशंका से माता हुलसी अपनी दासी के साथ ससुराल भेज गई वहॉ उनकी देखभाल दासी ने 5 वर्श तक की फिर वह भी चल बसी। अब तक यह बालक पूरी तरह से अनाथ हो गया था। एक दिन इन पर संतश्री नरहयानन्द की नजर पड़ी उन्होनें बालक का नाम रामबोला रखा। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को जन-जन तक पहुॅचाने वाले भक्त शिरोमणि तुलसीदास को अपने आराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के दर्शन चित्रकूट में हुये थे और उन्होनें अपने आराध्य युगल राम लक्ष्मण को तिलक भी लगाया था । कहा भी गया है कि
‘‘ चित्रकूट के घाट पै, भई संतन की भीर।
  तुलसीदास चन्दन घिसै, तिलक देत रघुवीर।।’’
तुलसीदास के प्रिय और आराध्य राम का तुलसीदास के जीवन में काफी प्रभाव रहा। तुलसीदास ने एक महाकाव्य लिखा जिसका नाम है -‘‘रामचरित मानस।’’
रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास का महाकाव्य है इस काव्य को लिखने में कवि का उद्देश्य रामभक्ति का प्रचार करना और सामान्य जीवन को पारिवारिक तथा सामाजिक दृष्टि से उॅचा उठाना है। 16 वीं सदी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में राम को महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्रीराम को एक मानव के रूप में दिखाया गया है। तुलसी के प्रभु श्रीराम सर्व शक्तिमान होते हुये भी मर्यादा पुरूषोत्तम है।
तुलसीदास ने बालकाण्ड में स्वंय लिखा है कि उन्होनें रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या में विक्रम संवत 1631 को रामनवमी ‘‘मंगलवार’’ को किया था। गीता प्रेस गोरखपुर के श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के अनुसार रामचरित मानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास को दो वर्ष, सात माह छब्बीस दिन लगे थे और उन्होनें इसे 1633 कके मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था। तूलसीदास ने रामचरित मानस में हिन्दी के अंलकारों का बहुत प्रयोग किया है खासकर अनुप्रयास अंलकार का। छन्दों की संख्या के अनुसार बालकाण्ड सबसे बड़ा और किष्किन्धाकाण्ड सबसे छोटा है। अवधी में रचित रामचरित मानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46 वॉ स्थान दिया गया है। अपने आराध्य श्रीराम को समर्पित रामचरित मानस में उन्होनें रामराज्य का वर्णन करके राज्य का वास्तविक आदर्श प्रस्तुत किया है किन्तु सबसे बढ़कर रामचरित मानस मानव जाति के लिये मन्त्र बन गई है यह एक भक्ति काव्य भी है इसमें भक्ति के साथ दार्शनिकता भी है रामचरित उत्तर भारत में रामायण के रूप में कई लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है । अपने आराध्य की महिमा का गुणगान करते हुये निराकार को ही परमब्रहम मानने की भी सलाह दी है।
उदाहरण के लिये रामचरित मानस की कुछ चौपाईयों को लेते हैं। बात उस समय की है जब मनु और सतरूपा परम ब्रहम की तपस्या कर रहे थे । कई वर्ष बाद शंकर जी ने तपस्या करने के बाद स्वंय पार्वती से कहा कि मैं, ब्रहमा और विष्णु कई बार मनु सतरूपा के पास वर देने के लिये आये जिसका उल्लेख तुलसीदास द्वारा इसप्रकार मिलता है कि
‘‘ विधि हरि हर तप देखि अपारा।
  मनु समीप आये बहु बारा।।’’
जैसा कि उपरोक्त चौपाई से पता चलता है कि ये लोग तो कई बार आये यह कहने कि जो वर तुमा मॉगना चाहते हो, मॉग लो पर मनु सतरूपा को तो पुत्र रूप में स्वंय परम ब्रहमा को ही मांगना था फिर ये कैसे उनसे यानी शंकर ब्रहमा और विष्णु से वर मांगते हमारे प्रभु श्रीराम तो सर्वज्ञ है। वे भक्त के जहन की अभिलाषा को स्वतः ही जान लेते है। जब 23 हजार वर्ष और बीत गये तो प्रभु श्रीराम के द्वारा आकाशवाणी होती है।
‘‘ प्रभु सर्वग्य दास निज जानी, गति अनन्य तापस नृपरानी।
  मांगु मॉगु बरू भइ नभ बानी, परम गम्भीर कृपामुत सानी।।’’
इस आकाशवाणी को जब  मनु सतरूपा सुनते है तो उनका मन प्रफुल्लित हो उठता है और जब स्वंय परम ब्रहम राम प्रकट होते है तो उनकी स्तुति करते हुये मनु और सतरूपा कहते है-
‘‘ सुन सेवक सुरतरू सुरहोनू, विधि हरि हर वंदितपद रेनू।
सेवत सुलभ सकल सुखदायक,प्रणतपाल सचराचर नायक।।’’
अर्थात् जिनके चरणों की वन्दना विधि,हरि और हर यानि ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों ही करते है तथा जिनके स्वरूप की प्रंशसा सगुण और निगुण दोनों करते है उनसे वे क्या वर मॉगे इस बात का उल्लेख करके तुलसी बाबा ने उन लोगों को भी सलाह दी है जो केवल निराकार को ही परमब्रहम मानते है। यदि कहा जाये कि तुलसीदास के प्रिय राम उनके रोम-रोम में निवास करते हैं यह बात कतई हास्यपद या अनुचित नहीं होगी।
पारसमणि अग्रवाल
पत्रकारिता विघार्थी
फिल्म इंस्टीट्यूट ऑफ ंएमिट्स