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जानिये, बेरोजगारी के लिये जिम्मेदार कौन ?

कैंसर रूपी जटिल बीमारी देश को खोखला करती जा रही है युवा वतन कहे जाने वाले भारत वर्ष के अंधिकांश युवा इस बीमारी की जंजीरों में जकड़े हुये प्रतीत हो रहे है। बेरोजगारी नामक इस बीमारी के लिये जितनी जिम्मेदार हमारी सरकार है उतना ही जिम्मेदार हमारा समाज, क्योंकि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती। सत्ता के सिंहासन पर बैठ हमारे जनप्रतिनिधि निजी स्वार्थ की पूर्ति करते हुये गूंगे बहरे बने बैठे हुये है यदि यह कहा जाये कि वह संवेदनहीन हो चुके है तो यह कहना बिल्कुल भी मिथ्या नहीं होगा। निजी स्वार्थों की पूर्ति करते-करते जनता के दुःख दर्दों से सरोकार तो सिर्फ दिखावा मात्र रह जाता है जनता के लिये याद रह जाता है तो वो सिर्फ और सिर्फ एक शब्द ‘‘निन्दा’’। जिसे मौका मिलते ही अपने चाशनी युक्त शब्दों के माध्यम से जनता के सामने रखने में वे कोई कोरी कसर नहीं छोड़ते।खैर, सीधा विषय की ओर रूख करते है क्योंकि अभी तक आप को ये बात पच नहीं पा रही होगी कि ‘‘ धैर्य और ईमान की कमी बेरोजगारी के लिये वरदान साबित हो रही है।’’ चिन्ता न कीजिये , धैर्य रखिये आपको आपके जहन में उठ रहे सवालों के जवाब भी मिल जायेंगे।
आप अपने सवाल का जवाब इसी बात से हासिल कर सकते है कि धैर्य की कमी कैसे बेरोजगारी के लिये वरदान साबित  हो रही है ? अक्सर समाचार पत्र पत्रिकाओं एवं न्यूज चैनलों पर ऐसे समाचार देखने को मिल जायेंगे जिनमें स्पष्ट रूप से आवेदक के अन्दर धैर्य की कमी देखने को मिल जायेगी। उदाहरण के तौर पर किसी विभाग में किसी पद के लिये 800 रिक्त जगह के लिये आवेदन मांगे जाते है और उस पद के लिये आवेदन करने वाले विद्यार्थी की योग्यता का मानक हाईस्कूल तय किया जाता है। लेकिन आवेदन जमा करने की अन्तिम तिथि बीत जाने के बाद जो परिणाम सामने दिखाई देते है वो निश्चित तौर पर अविश्वसनीय, अकल्पनीय, एवं शर्मनाक होते है क्योंकि जिस 800 पदों के लिये आवेदन हाईस्कूल की अर्हता पूर्ण करने वाले आवेदकों से मांगे जाते है उसके लिये 34000 आवेदन प्राप्त होते है। बड़ी संख्या में आये आवेदन बेरोजगारी के साम्राज्य की स्पष्ट गाथा का बखान कर रहे है किन्तु आश्चर्य जनक बात तो यह है कि जिस पद के लिये योग्यता के मानक मात्र हाईस्कूल निर्धारित थे उस पद के लिये स्नातक, परास्नातक, विद्यावाचस्पति आदि के साथ-साथ अभियांत्रिकी व चिकित्सा के विद्यार्थी भी अपने आवेदन इस तुच्छापद के लिये करते है।
समझदार तो आप भी है इसलिये इस बात की गहराई तक स्वतः पहुॅचने में खुद को न कामयाब महसूस नहीं कर रहें होगें कि जब स्नातक, परास्नातक, विद्यावाचस्पति आदि के साथ-साथ अभियांत्रिकी व चिकित्सा जैसी डिग्री धारकों द्वारा ऐसे पद के लिये आवेदन कर दिया जाता है जो उनके लिये सर्वथा अयोग्य है। ऐसी स्थिति में क्या हाईस्कूल पास आवेदक अपने रोजगार का सपना पूरा कर सकेगें ? बिल्कुल नहीं।
 अब प्रश्नचिन्ह लगता है इस बात पर कि ईमान की कमी कैसे बेरोजगारी को बढ़ावा देने में सहायक साबित हो रही है ? इस छोटे लेकिन गम्भीर सवाल का जवाब भी एक छोटे से उदाहरण का चित्रण कर सामने लाने का प्रयास करते है। मान लीजिये आपने किसी शासकीय विभाग में रिक्त पद के लिये आवेदन किया है विभाग द्वारा र्निधारित प्रक्रिया का भी नियमानुसार पालन किया है लेकिन दुर्भाग्य और बदकिस्मती ये परिणाम आशाजनक और सकारात्मक नहीं आते है तो अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति हेतु अदालत की शरण में जाकर रिक्त पदों पर भर्ती की प्र्रिया पर रोक लगवा दी जाती है। रोक के उपरान्त प्रक्रिया के आगाज से अन्जाम तक की पूरी जॉच कराने के दिशा-निर्देश जारी हो जाते है इस प्रक्रिया के ठोस निर्णय तक पहुॅचने में एक लम्बा वक्त लग जाता है जिस कारण हजारों युवाओं की रोजगार की उम्मीद अधर में लटक जाती है । पिछले कुछ वर्षों का सत्यता व निष्पक्षता के पायदान पर खड़े होकर आंकलन करें तो रोजगार के लिये उपर्युक्त प्रकिया का नियम सा बन गया है कि पहले चरण में रिक्त पदों के लिये आवेदन द्वितीय में परीक्षा तृतीय चरण में अदालत की रोक व जॉच इसके बाद तब कहीं जाकर रोजगार की आस पूरी होती है। ज्यादा कुछ न कहते हुये इस बात के साथ अपनी कलम को आराम देते है कि बेरोजगारी के लिये सिर्फ सरकार को न कोसकर सिर्फ सरकार खुद की गलेबांन में झांककर खुद को सुधारिये क्योंकि जनता सरकार का निर्माण करती है न कि सरकार जनता का। कहा भी गया है कि हम बदलेंगे, जग बदलेगा। हम सुधरेंगे जग सुधरेगा।

पारसमणि अग्रवाल
8005271243