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Sweet Doll - एक अधूरी प्रेम कहानी 1 (उपन्यास- गर्लफ्रेण्ड से साभार)

स्वीट डॉल शब्द पढ़कर ही मन में स्वतः इस बात का उत्तर मिल गया होगा कि ये अधूरी प्रेम कहानी एक ऐसे लड़के की है जो एक लड़की को बहुत पसन्द करता है प्यार से उसे स्वीट डॉल कहकर बुलाता है। इतना ही सुनकर आपके मन में इस दिलचस्प स्टोरी को पढ़ने की लालशा जागृत हो गई होगी क्योंकि कहा जाता है कि सच्चा प्यार कभी नहीं मिलता। क्या उस लड़के को उसका प्यार मिला ? क्या उसे भी प्यार का दर्द मिला? क्या वह लड़की उस लड़के को समझ पाई ? समझ सकता हॅू ऐसे ही तमाम प्रश्न होगें आपके दिल में जिनके उत्तर पाने को आप तड़प रहे होगें लेकिन थोड़ा धैर्य रखिये प्यार के सही अर्थ के साथ इन तमाम प्रश्नों के उत्तर से ओत-प्रोत उपन्यास ‘‘गर्लफ्रेण्ड’’ यथाशीघ्र ही आपके सामने होगा अभी आपके सामने प्रस्तुत है उपन्यास ‘‘गर्लफ्रेण्ड’’ का एक छोटा सा अंश ‘‘स्वीट डॉल-एक अधूरी प्रेम कहानी’’



पिछड़े इलाके के छोटे से कस्बे में रह रहे तेजस्वनी के सपने उसे उसका गॉव एक कुयें का आभास करा रहा था वह भी संसाधनों एवं उचित मंच के अभाव में खुद को एक कुयें के मेंढक के तौर पर समझता था उसकी लालशा थी कि वह भी कुछ ऐसा करें जो उसे भीड़ में शामिल न कर भीड़ से अलग पहचान बनाने में सहायक सिद्ध हो और आखिरकार वह छोटी-छोटी ऑखों में बड़े-बड़े सपने संजोयकर एवं अपने शुभचिंतकों की उम्मीदों की कसौटी पर खरा उतरने का संकल्प लिये युवावस्था की दहलीज पर दस्तक देने के साथ-साथ शिक्षण के लिये पलायन को मजबूर हुआ। शिक्षण संस्थाओं की काफी खोजबीन के बाद तेजस्वनी को उसके कस्बे से करीब सात घण्टे की दूरी पर एक कॉलेज में उसका प्रवेश करा दिया गया। रहने-खाने की व्यवस्था भी कॉलेज के ही हॉस्टल और कैंटीन में हो गई। अब तक तेजस्वनी अपने कस्बे से दूर नये माहौल के साथ एक नये शहर के नये लोंगों के बीच एक नये कॉलेज में अजनबी सा हो गया था। इससे पूर्व स्नातक में कस्बे के एक महाविद्यालय में अध्ययनरत रहते हुये वॉलियन्टर छात्र एवं छात्रनेता होने के कारण छात्र-छात्राओं में अच्छी पकड़ रखता है और महाविद्यालय में छात्र/छात्राओं के साथ मेल-मिलाप एकदम परिवार जैसा था। नये शहर के नये कॉलेज में आने के बाद अकेलेपन ने उसे रिश्ता कायम कर लिया और उसे याद सताने लगती थी अपने पुराने कॉलेज की, अपने कस्बे की। लेकिन बेचारा तेजस्वनी भी क्या करता वह मजबूर था उसे अपना कैरियर जो बनाना था अपने सपने को साकार रूप देना था इसलिये अकेलेपन से दोस्ती कर अजनबी होकर कभी वह पुराने साथियों से फोन पर बात कर, तो कभी वह लेपटॉप में संजोयकर रखी गई तस्वीरों को देखकर, तो कभी रोकर वक्त काट लेता था और मन को समझा लेता था कि कुछ दिन इंतजार कर फिर तो आदत हो जायेगी कुछ पाने के लिये कुछ तो खोना पड़ेगा। एक अच्छे कैरियर की चाहत में अपने परिवार, अपनों की दूरी तो बर्दास्त करनी ही पड़ेगी। तेजस्वनी जिस हॉस्टल में रहता था जिस फ्लोर पर लगभग एक दर्जन विद्यार्थी विभिन्न कक्षाओं के रहते थे वक्त की बढ़ती रफ्तार के साथ-साथ ये सब भी एक दूसरे को समझते जा रहे थे और आपसी एकता का माहौल भी सृजित होने लगा था सभी के अन्दर एक दूसरे की परवाह की भावना जाग्रत हो गई थी जिसने तेजस्वनी के साथ अकेलेपन के साथ जुड़े रिश्तों की जड़ में मठ्ठा डालने का कार्य किया। घड़ी की टिक-टिक करती सुई के साथ दिन यूॅ ही गुजरते रहे कुछ दिनों बाद से उसके हॉस्टल के पास ही बने गर्ल्स हॉस्टल में दो लड़कियां रहती थी मर्णिका और रोहिता। जो उसकी क्लासमेट थी शाम के वक्त दोनों अक्सर कैंटीन में मिल जाया करती तो उसकी क्लासमेट मर्णिका जो उसी शहर की रहने वाली थी और काफी सकारात्मक सोच रखती थी बातों बातों में वह तेजस्वनी को समझाती हुई प्रतीत होती थी कि तुम में काफी टैलेंट है कॉलेज के प्रोग्रामों में बढ़चढ़कर सहभागिता करना जिससे लोग तुम्हारे टैंलेंट को जान सके। एक दूसरी क्लासमेट के वजह से मर्णिका दर्दनाक और भंयकर दुर्घटना की शिकार हो गई। 





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