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ईद....कितना इंतजार रहता था न तुम्हारा..पर अब...

रमजान मुबारक
रमजान का नाम सुनते ही घर की यादों में स्फूर्ति आ गई और महसूस कराने लगी उन लम्हों को जो ईद को लेकर स्मृतियों के गुलदस्ते में सज चुके है
सच बताए तो जितनी बेसब्री से दशहरा और दीपावली का इंतजार रहता था उतनी बेसब्री से ईद का इंतजार..
रोजा प्रारम्भ होते ही रोजा इफ्तार के वक्त मस्जिद पर अफ्तारी लेकर जाना जुमा या जुमेरात को दोस्तों के साथ मिलकर रोजा इफ्तार की पार्टी देना..अन्य रोजा इफ्तार की पार्टियों में बुलाया जाना...बाजार में बिकने वाली सिवइँया सूती फैनी और खजूर के साथ नाश्ता करना, कितना सुहाना था न सब... वक्त का पता ही नहीं चलता था कब पूरा माह गुजर गया और इंतजार रहता था जिस दिन का वह आ जाता था वह था ईद
ईद का चांद दिखते ही मुबारकवाद के साथ-साथ ईदी भी मिलने लगती थी
दूसरे दिन सुबह से ही सभी मित्रों के आमंत्रण और सबके घर जाना दिन भर सिवइँया खाना... समाज मे सक्रिय होने के कारण परिचय क्षेत्र बड़ा है इसलिये एक दिन में सबके यहां नहीं पहुँच पाते थे तो दूसरे दिन वासी ईद खाने के लिये बुला लिया जाता था फिर भी ग्रुप के भाई बहिन रह जाते थे जिनके यहां नही पहुँच पाते थे तो तीसरे दिन सबको एक साथ पार्क में बुलाकर सिवइँया खाना मौज मस्ती करना.... वाकई कितना अच्छा लगता था।
ईद से अधिक लगाव होने के कारण ईद से जुड़ी घटनाएं भी जहन में ताजा हो जाती है एक बार ईद की नमाज पढ़ने के बाद सबको मुबारकबाद देने के लिये हमने भी अपना पंडाल लगाया ठीक उसके जस्त बगल में एक माननीय का पंडाल लगा था मीडिया ने उसे कवरेज किया हमें महत्व नहीं दिया बड़ा बुरा लगा और खुद को रोक न सका सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल किया कि अभी तक तो सुना था पर कल ईदगाह पर अहसास भी कर लिया कि बड़े वृक्ष के छाया में छोटे वृक्ष नही  पनप पाते ..कुछ लोगों को सम्भवतः भूल का अहसास हुआ।
यादों में सिमटा हुआ कल कितना सुहाना था ..आज भी हंसने को मजबूर कर देती है लड़कपन भरी वह शरारतें ,अपनो का अपनापन लेकिन तरक्की के राह ये सब कंही गुम सा हो गया बस पास रह गई तो वो यादे ..
कितना बदल गया वक्त...कामयाबी के ऐसे मोड़ पर ले आया कि अब आने वाली ईद भी फीकी लगने लगी क्योंकि नए शहर के नए माहौल में खुद तक ही सीमित होकर रह गया हूँ अब न ईद की सिवइँया है और न ईदी

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