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"मेले बाबू ने खाना खाया"

सच में वक्त परिवर्तन शील है बिना रुके टिक टिक करती घड़ी की सुई के साथ वक्त आगे बढ़ जाता है और पास रह जाता तो है तो वो सिर्फ अतीत, कुछ ऐसे लम्हें जिन्हें इतिहास के पन्ने स्वर्णिम अक्षरों में खुद पर उकेरने के लिए उत्साहित रहते हैं।
विकास की तकदीर और तस्वीर भी इस कदर बदल जाती है कि यादें सिर्फ यादें बन जाती है और उन यादों को याद कर एक अजीब सा सकूँन मिलता है।
सूरज ढल रहा होता है, अंधेरा बढ़ता जाता है और रात का आगाज होता है यानि कि वक्त होता है 6 से 8 बजे शाम का घर की बखरी (दालाहन) में सारा परिवार इकट्ठा रहता था । बड़े बुजुर्ग किस्सा कहानी सुनाते थे।बच्चे भी अपनी किताब की कहानी और चुटकुला सुनाते थे । कितने हसीन दिन होते थे न वो जब हमारी शाम को एक राजा और एक रानी खुशनुमा बना देते थे। कुछ पल परिवार के साथ यादगार बना देते थे और मिटा देते थे सारी थकान लेकिन मौजूदा परिवेश मे ये क्षण कंही लापता हो गए है। बदलाव के साथ कुछ नया आया तो प्रेम पुजारियों द्वारा पूछा जाने वाला यह सवाल जो बेहद ही प्यार भरी तोतली आवाज में होता है कि ...मेले बाबू ने खाना खाया।
वक्त ने इस कदर करवट बदली कि पश्चात संस्कृति से हम प्रभावित होने लगे इस आग में घी डालने का कार्य किया टेक्नोलॉजी के तरफ बढ़ते हमारे बढ़ते कदमों ने और अब फलस्वरूप लोग टच में रहकर भी टच में नहीं है। इस आग से जन्म लिए गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड नामक उत्पाद की डिमांड दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है इसलिए भोजन के समय यह सवाल आम सा हो गया कि "मेले बाबू ने खाना खाया" क्योंकि न तो अब राजा रानी की कहानी है, न ही पूरे परिवार को एक साथ बैठने की फुर्सत, भले ही एक कमरे में चार लोग क्यों न बैठे हो लेकिन चारों अपनी अपनी दुनिया मे मस्त होंगे इसलिए आप भी पूछ लीजिए आपके बाबू ने खाना खाया या नहीं?

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