भारत बहु पारम्परिक देश है और देश के सबसे बड़े सूबे की राजधानी मुख्यालय पर आयोजित 24 वां महोत्सव विलुप्त होती लोककला, संस्कृति को संजीवनी प्रदान कर रहा है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के शांति उपवन में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी को समर्पित 24 वें लखनऊ महोत्सव में संस्कृति और विरासत की खुशबू मेले को जन मानस के बीच लोकप्रिय बना रही। कठपुतली नृत्य, नगाड़ा जैसी परम्पराएं अतीत के साथ इतिहास के पन्नों को प्यारी होती जा रही है। वहीं हस्तशिल्प को भी महोत्सव बढ़ावा देता हुआ दिखाई दिया।
दरसल गुरुवार को मध्यदिन फ़िल्म इंस्टिट्यूट ऑफ एमिट्स द्वारा मीडिया के विद्यार्थियों को लखनऊ महोत्सव का शैक्षिक भ्रमण कराया गया। संस्थान द्वारा प्रदान किये गए इस अवसर की सहभागी बन दूसरी बार लखनऊ महोत्सव का अपनी बुद्धिमत्ता से अवलोकन किया। लेकिन खास बात यह रही कि इस बार भी महोत्सव की जगह में परिवर्तित कर दिया गया। चंचल मन और उत्सुक जहन ने सवाल खड़ा किया कि हर बार महोत्सव के जगह में परिवर्तन क्यों हो जाता है? जवाब की तलाश में निकले तो यही हल तो नहीं मिल पाया लेकिन इतना जरूर पता चला कि कुछ वर्ष पूर्व मेला यही लगता था अब फिर से यही लगने लगा।
दिल में ढेर सारे सवालों के साथ मेले में मौजूद हर एक चीज को बारीकी से निहारते हुये अग्रसर हुए तो पता चला कि "लखनऊ महोत्सव" के अंर्तगत युवा महोत्सव का भी आयोजन होता है जिसमें विभिन्न विधाओं की प्रतिभाओं को एक मुकम्मल मंच प्रदान किया जाता है। इस सवाल के जवाब मिलते ही एक ओर सवाल ने अपना सृजन कर लिया कि इस महोत्सव में क्या सिर्फ लखनऊ की ही प्रतिभाओं को मौका मिलता है या फिर अन्य जनपदों की प्रतिभाओं को? तो जवाब मिला कि अन्य जनपद की प्रतिभाओं को भी अवसर मिलता है ऐसे में एक प्रश्न फिर मन में कौंध उठा कि जब हर जनपद की प्रतिभाओं को अवसर मिल रहा। औऱ राजधानी मुख्यालय पर हो रहा तो इसका नाम लखनऊ महोत्सव ही क्यों रखा गया यूपी महोत्सव क्यों नहीं?
0 टिप्पणियाँ