बात कुछ अटपटी सी जरूर लग रही हो मगर ये सच है कि ‘‘तितलियों के शिकार होकर रोज मुरझा रहे है फरवरी के महीने को इश्क का महीना कहा जाता है जिसका खुमार अधिकांश युवाओं पर जोरों-शोरों से चढ़ा रहता है लेकिन जब रोज डे पर इस बात की पड़ताल की तो परिणाम ये सामने निकल कर आए कि तितलियों की चाहत उनके लिए वरदान बनने के वजह अभिशाप बनती जा रही है। देखने को यह भी मिला कि अपनी मोहब्बत को मुकम्मल बताने वाले प्रेम पुजारी इश्क की सही परिभाषा तक नहीं जानते।
मौजूदा समय में ज्यादातर युवा जिसे प्यार का नाम दे रहे दरसअल वो प्यार है ही नहीं, अर्थात् उसे सिर्फ एक अटैचमैंट के अलावा ओर कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि प्यार तो एक अहसास है, एक जुनूनू है, एक विश्वास है यानि कि सच्ची मोहब्बत को अल्फाजों में नहीं उकेरा जा सकता। इसे अटैचमैंट इसलिए कहेंगे क्योंकि अपने आप को सच्चा प्यार करने वाला साबित करने के लिए आज का भटकता युवा कामकाज को छोड़ घण्टों मोबाइल पर चिपका रहता है इस आग में घी डालने का काम सोशल मीडिया भी बखूबी निभा रहा है जो कामकाज के दौरान चैटिंग करने में मद्दगार साबित होता है आप कल्पना कर सकते है कि कितना समय जाया होता होगा?
आधुनिक परिदृश्य को देखते हुए कोमल हृदय में यह सवाल एक नुकीले कांटे के तरह चुभ इस बात का हल पाने के लिए संर्घषरत् है कि क्या मोबाइल तकनीकि एवं सोशल मीडिया के जन्म से पूर्व प्यार नहीं होता था क्या ? पश्चात् संस्कृति के गर्लफ्रेण्ड एवं ब्रायफ्रेण्ड नामक उत्पाद इश्क के बाजार में बम्पर छाए हुए है और फलस्वरूप लक्ष्य से ध्यान भटक तितलियों पर केन्द्रित हो गया सिर्फ इतना ही नहीं इस नए नवेले उत्पाद ने अपनी जड़े इतनी मजबूत हो गई कि स्मार्ट, मॉर्डन होने के लिए तितली अहम भूमिका में आ गई यदि आप के पास गर्ल/बॉयफ्रेण्ड है तो आप आधुनिक है और नहीं है तो दोस्तों, साथियों के मजाक का शिकार अर्थात् परिणाम स्वरूप किशोरावस्था की दहलीज लांघ युवावस्था में पहुच रहे प्रेमी मजबूरी में इस दलदल में आ जाते है और फलस्वरूप वह तितलियों के शिकार होकर मुरझा जाते है क्योकि हर कार्य उचित समय पर ही ठीक लगता। पढ़ाई के उम्र में इश्क हो जाए और इश्क की उम्र में पढ़ाई का विचार आए तो स्थिति क्या होगी आप खुद समझ सकते है क्योकि आप समझदार है।
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