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मेले बाबू, तुम बेशर्म बन जाइयो.......


अले न न बाबू... तुम इत्ते हैरान न हो....सब अच्छौ हुए....जो तो समाज है...बकतई रहत....तुम जापे ध्यान नहीं दो अपनो काम करो....एकदम गूंगे और बहरे बन जाओ मतलब इते उते की कुछ नहीं केवल अपनी मंजिल को देखो मतलब कोउ कुछु कहत रह तुम बेशर्म बन जाइयो.....
हओ बाबू...तुम एकदम बेशर्म बन जाओ पड़ोस वाले चाचा का कह रहे, स्कूल की मैडम का कह रही जो मतलब की बात नहिया सब भूल जाओ रामदई तुम बहुत आगे बढ़ सकत बस सही दिशा में आगे बढ़तई जाओ हमाए मास्साब भी बतात कि ‘‘खुद को कर इतना बुलंद कि खुदा ही खुद पूछे बोल, तेरी रजा क्या है? पता बाबू जो अपने बाजू वाले अंकल है न, उनको लड़का बहुतई अच्छो लिखत, जब वा ने लिखवो चालू करो तो पता लोग का कहत थे? लोग कहत थे कि जो तुम कहानी,कविता लिख रहे जा से का हुए डाक्टर बनो, इंजीनियर बनो तब तो कोनउ बात है। लोग जो बोलने के बाद ही चुप नहीं रहत थे कैंची की तरह उनकी जुबान कच कच चलती रहती थी और कहते थे कि बड़े-बुर्जुग कह गए कि सरस्वती और लक्ष्मी की आपस में लड़ाई है, जहां सरस्वती वहां लक्ष्मी नहीं होती और जहां लक्ष्मी न होती वहां सरस्वती होती। जासे इन सब से कछु नहीं होत। यानि कि सबके सब बाजू वाले अंकल के लड़के का उत्साह कम करवे में लगे थे लेकिन वा ने एकउ नहीं सुनी और लिखवो नहीं छोड़ो और वो जाके एक बड़ो लेखक बन गयो अब वे ई लोग वा लड़का से अपने पत्र बगैरह लिखवात और वा की तारीफ करत-करत थकत नहिया। हालांकि वाये मेहनत बहुत करनी पड़ी बहुत मुश्किलन को देखनो पड़ो लेकिन वाने कोउ की न सुनी जइसे मेले बाबू, कोउ को कछु फालतू बात न सुनो तुम बेशर्म बन जाओ।