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हाँ, अजीब हूँ मैं

अक्सर सुनने को मिल जाता कि "तुम बड़े अजीब हो" क्या करूँ मैं ? भगवान ने पता नहीं किस मिट्टी का बनाया है? जैसा हूँ अच्छा हूँ बुरा हूँ सामने हूँ तुम कहते हो तो सच ही कहते होंगे चलो आज हम भी स्वीकार किये लेते है कि हाँ अजीब हूं मैं।
मुझे जानते तो है सब है , लेकिन ऐसे एक दो लोग ही मिले जो मुझे समझ सके, मुझे पहचान सके इसलिये अगर तुम कहते हो कि बड़े अजीब हो तुम तो हमें कोई गिला-शिकवा नहीं है।
अजीब नहीं होंगे तो क्या होंगे दूध का जला छाछ फूंककर तो पियेगा ही न । कभी समझकर देखो खुद मालूम चल जायेगा लेकिन अच्छा किया आपने अभी तक जो समझने की कोशिश नहीं की क्योंकि राज को राज ही रखा जाये तो बेहतर है। भीड़ से अलग पहचान बनाने की चाह में बचपन की कुर्वानी ले ली। जैसे तैसे एक अजागरूक माहौल के बीच अपने सपनों को साकार करने के लिये निकल पड़ा जीत के लिये सम्भावनाओं और मार्ग की तलाश में मौका का फायदा उठाते हुये हसीन सपने दिखाकर खूब फायदा उठाया जब तक समझ पाता था हर बार देर हो जाती थी और निराशाजनक उम्मीदों के साथ फिर एक नई कोशिश के लिये खुद को तैयार करता रहा । कोशिशों की नाकामियों ने कई बार तो मुझे हिला कर रख दिया। देशद्रोह जैसे आरोप, एक साल का बर्बाद होना इस छोटी सी जिंदगी के वो काले दिन से है जिन्हें यादकर आज भी आँखों से निकला पानी होंठों को स्पर्श करने लगता। आज भी याद है जब सब से दूर जाने का मन बना लिया था काश अगर कुछ अपने हमारे साथ न होते तो आज हम ये पोस्ट भी न लिख रहे होते। खैर छोड़िये, आप खुश रहिये यदि आपको लगता है मैं अजीब हूं तो हाँ मैं अजीब हूँ।

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