Ticker

12/recent/ticker-posts

*हिन्दी दिवस नहीं, हिन्दी श्रद्धांजलि दिवस कहिये।*

हिन्दी का नाम सुनते ही मन में एक अजब सी अनुभूति होने लगती है और गर्व होने लगता है कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है लेकिन वक्त की बढ़ती रफ्तार और समय के साथ हिन्दी भी अपने जहन में छुपे लाखों दर्द से तड़पती हुई महसूस की जा सकती है क्योंकि जिन पुत्रों की वह मातृभाषा है उन्हीं पुत्रों से वह सम्मान, स्नेह पाने की वजह निरादर, नजरअंदाजगी का सामना करना पड़ रहा है। आधुनिक परिवेश में हिन्दी अपनी संस्कृति से कितना स्नेह, सम्मान पा रही है इस सवाल का हल इस बात से तलाशा जा सकता है कि सनातन संस्कृति में एक परम्परा है कि उस परम्परा से रिश्ता रखने वाले लोग अपना जन्मदिन अपने सगे-सम्बन्धियों, दोस्तों के साथ हर वर्ष यादगार लम्हों में संजोयकर हर्षित होते है। ठीक इसी प्रकार परिवार का व्यक्ति जब यमलोक पहॅुच जाता है तो उसका परिवार, उसके शुभचिंतक उस दिन जिस दिन उसका निधन हुआ हो हर वर्ष उस दिन को स्मृति दिवस के रूप में मनाकर उनके साथ बिताये पलों को याद कर उन्हें श्र्रद्धांजलि अर्पित करते है। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि ठीक इसी प्रकार हिन्दी को मात्र एक दिवस में अर्थात् हिन्दी दिवस के रूप में ही समेटने का काम किया जा रहा है। यह बेहद ही दुर्भाग्य और शर्मनाक पूर्ण है। अगर यह कहा जाये कि हिन्दी दिवस के नाम पर हिन्दी के पीठ पर ही छुरा भौंका जा रहा है तो यह बिल्कुल भी अन्याय संगत नहीं होगा। हिन्दी के नाम पर लोगों को इकट्ठा कर सफेद लकीचदार चमचमाता कुर्ता पहन मंचों पर हिन्दी दिवस पर बड़ी-बड़ी बातें हॉकने वाले कुकरमुत्तों की तरह मिल जायेंगे जब कभी ऐसे समारोहों में शरीक होने का अवसर मिलता है तो समारोह को आगाज से अंजाम तक पहुॅचाने वाली गतिविधियों को देखकर दिल रो देता है  क्योंकि हिन्दी दिवस, हिन्दी दिवस नहीं हिन्दी श्रद्धांजलि दिवस लगता है। क्या कभी आपने सुना है कि अन्य भाषा का भी कोई दिवस मनाया जाता हो जैसे- अंग्रेजी दिवस, फ्रेंन्च दिवस, इत्यादि।
नहीं सुना न, तो फिर आखिर हिन्दी दिवस क्यों ? कुछ हिन्दी प्रेमियों का तर्क है कि हिन्दी दिवस लापता हो रही हिन्दी को बचाने के लिये एक प्रयास, हिन्दी के सम्मान, स्वाभिमान को बरकरार रखने के लिये हिन्दी दिवस का आयोजन होता है इसलिये नाराजगी मत जाहिर कीजिये आप नहीं बतायेंगे तो कौन बतायेगा ? आखिर कोई भी पेट से सीखकर थोड़े ही आता। मन की याथार्थ जाननें की अभिलाषा सवालों के मकड़जाल को बना देती है जिसके बन्धन से छुटकारा पाना मेरे लिये स्वर्ग के लिये सीढ़ी बनाने जैसा है। मैं पूॅछना चाहता हॅू हिन्दी दिवस पर हिन्दी के सम्मान, स्वाभिमान का तर्क देने वाले हिन्दी प्रेमियों से कि क्या एक साल में एक दिवस हिन्दी को यादकर उसे प्रगति के पथ पर लाया जा सकता है ? एक साल में एकदिन याद करने से हिन्दी के सम्मान, स्वाभिमान के साथ-साथ उसके अस्तित्व की रक्षा की जा सकती है ? हिन्दी हमारी मातृभाषा है अर्थात् हमारी मॉ है तो मॉ को क्या वर्ष में एक बार याद करना, एक बार सम्मान देना क्या सही है ?
हिन्दी दिवस अब हिन्दी दिवस सा नहीं बल्कि हिन्दी श्रद्धांजलि दिवस सा प्रतीत होता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ