Ticker

12/recent/ticker-posts

विश्वास नहीं होगा, पर सच है

कहा जाता है कि इस संसार में सबसे प्यारा सबसे गहरा और दिली कोई रिश्ता है तो वो है दोस्ती........दोस्ती शब्द सुनते ही दोस्तों के साथ बिताये पल, शरारतें, यादें दिमाग के कैनवास स्वतः खुद को उकेर देती है। मन की बात साझा करने के साथ-साथ दिल का दर्द भी जिससे बिना किसी संकोच, बिना किसी डर के बता देते है वह है दोस्त,
दोस्त किसी कारखाने, बाजार या मॉल से नहीं खरीदा जा सकता है यह तो वो शख्स होता है जो पराया होकर भी अपना बन जाता है। अधिकांशतः दोस्त स्कूल, कॉलेज, ऑफिस आदि में कार्यरत रहते हुये बनते है। क्या आप ने सुना है कि भटकी हुई राह पर भी चलते-चलते दोस्त बन जाते है सिर्फ इतना ही नहीं मंजिल के नजदीक पहुचने के बाद जब दोनों अपने-अपने काम से अलग हो गये तो उस वक्त की चाहत भी दोनों को बार-बार मिला देती और राह चलती पहचान तब्दील हो जाती है दोस्ती में, यकीन नहीं हो रहा न , कहा था पर ये सत्य है अधिकतर लिखी कल्पनिक रचनाओं की तरह ये नहीं है बल्कि ये वाक्या है लल्लन टॉप के शो में जाते समय का
लल्लन टॉप शो में सहभागिता के लिये मन में अजीब सा उत्साह , अजीब सी उमंग लिये कार्यक्रम स्थल इन्दिरा गॉधी प्रतिष्ठान लिये अपने उत्तरायण हॉस्टल से एकला निकल पड़े। रास्ते का मार्ग से अंजान था जैसे-तैसे हाईकोर्ट के पास पहॅुचा क्योकि ये संज्ञान में था हाईकोर्ट के पास है। गेट नं0 3 से मुड़ना था लेकिन मार्ग से अंजान होने के कारण आगे निकल गया कुछ दूर आगे पहुचने पर अहसास हुआ कि हम मार्ग भूल गये। राहगीर से पूछने पर पता चला कि वह हम पीछे छोड़ आये। दूध का जला छाछ फूंक-फूंककर पिये इसलिये थोड़ा-थोड़ा चलने के बाद इस बात की स्वीकृति मन को दे देता था कि हम गलत नहीं जा रहे है । हाईकोर्ट के पास एक युवक जाता हुआ दिखाई पड़ा चूकि हाईकोर्ट के गेट नं0 3 से मुड़ने के बाद शरारती मन में ये सवाल फिर से जाग्रत होने लगा कि कहीं हम गलत तो नहीं जा रहे ? तो उससे कार्यक्रम स्थल के बारे में पूछा तो जवाब आया ‘‘आगे है मैं भी वहीं जा रहा हॅू।’’ इन्दिरा भवन के गेट तक पहुचते-पहुचते कई सवाल-जवाबों के साथ आपसी संवाद चरम सीमा पर पहुॅच गया गेट पर उसके कुछ इष्टमित्र और मिल गये जिनसे उसने मिलाया यानि कि उत्तरायण से एकला चले थे हम, इन्दिरा प्रतिष्ठान पहुॅचते-पहुॅचते कारवां बढ़ता गया। सभागार के निकट पहुचॅने से पूर्व ही कॉलेज के कुछ साथी फोटोग्राफी करते मिल गये उनके कहने पर हम भी उनकी गतिविधियों में शामिल हो गये और राह में मिले ये साथी सभागार की ओर बढ़ गये। फोटोग्राफी करने के बाद जब सभागार की ओर रूख किया तो वक्त के तगड़े सहयोग से सभागार की उसी लाइन में जा पहुॅचा जहॉ राह में मिले साथी बैठे हुये थे लंच ब्रेक तक साथ रहे लेकिन उसके बाद फिर अलग होना पड़ा लेकिन बीच - बीच में ऐसा संयोग पड़ा कि उन सब से मुलाकात होती रही । सभागार से उत्तरायण आने के वक्त भी मैं अकेला था लेकिन जैसे ही मुख्य द्वार के निकट पहुचे तो ये साथी फिर मिल गये अबतक मुलाकात दोस्ती में परिवर्तित हो चुकी थी सभी ने निर्णय लिया कि कुछ वक्त और सभी साथ रहे इसलिये पैदल चला जाये ।
दोस्त सिर्फ स्कूलों कॉलेजों और ऑफिसों में ही नहीं बनाये जा सकते बल्कि दोस्त तो राह चलते भी बन जाते है ।