Ticker

12/recent/ticker-posts

तमाम दिलों-दिमाग में उठ रहे ज्वलंत सवालों के बेवाक जबाव

मन चंचल होता है, दिल पर दिमाग का काबू नहीं होता और बात दिल दिमाग की साथ हो तो दोनों आस-पास के परिदृश्य को अपने नजरिये से कैद कर उन पहलुओं से जुड़े सवालों का उत्पादन करने लगते है और मन में सुलगते सवालों की आयु में जैसे-जैसे वृद्धि होने लगती है वैसे - वैसे ही चिंगारी का रूप धारण किये प्रश्न ज्वाला के वेश में पल्लवित होने लगते है।
अक्सर कई क्षण ऐसे भी आ जाते है जो सवालों के उधोग को तत्परता के साथ संचालित कर जहन में जिज्ञासों का मकड़जाल बन जाते है और यह जानते हुये भी कि उसकी जिज्ञासा उसका सवाल का जबाव सामने वाले व्यक्ति के पास है लेकिन कुछ तथ्यहीन और आधारविहीन प्रश्न उस व्यक्ति से उसके हल पूछने का आत्मविश्वास नहीं इकट्ठा कर पाता है लेकिन मनुष्य जिज्ञासु होता है इसलिए प्रश्नों के हल , परिदृश्य में घटित हो रही घटनाओं से ओत-प्रोत कारण जनाने की लिलक रहती है औऱ मौका मिलते ही जुबान से वह अल्फ़ाज़ निकल ही आते है और क्यों? कैसे? किसलिये? आदि प्रश्नवाचक शब्दों से ओत-प्रोत वाक्य अपनी पड़ताल की तलाश में जुट जाते है।
आइये बात करते है ऐसे ही कुछ ज्वलंत सवालों के बेबाक उत्तर से रु-ब-रु होने के लिये एक सूक्ष्म उदाहरण के साथ।
मान लीजिये कि एक विद्यार्थी की अपने सीनियर विद्यार्थियों से अच्छी बॉन्डिंग है और सीनियर भी अपने उस जूनियर की हर सम्भवतः मदद करते। एक अंजान शहर के अपरिचित माहौल में उसके हर कदम पर हर दिक्कतों में साथ रहने के साथ-साथ एक अच्छे मित्र का फर्ज अदा करते है ।अन्य विद्यार्थियों की उसकी तरह सीनियर विद्यार्थियों से बॉन्डिंग या लगाव नहीं है तो ऐसे में अन्य विद्यार्थियों के बीच बेहद ही सरलतापूर्वक ये सुनने के मिल जाएगा कि इसकी सीनियर से अच्छी पट रही? सीनियर बहुत खयाल रखते तुम्हारा?  तुम्हें क्या दिक्कत तुम तो सीनियर के प्रिय हो? सीनियर के साथ क्यों इतना रहते हो? कंही दाल में कुछ काला तो नहीं या दाल ही तो काली नहीं?
ऐसे कई बेदम कटाक्ष एवं हास्यपद सवाल वजहों की तलाश करते करते मनगढ़त कहानियों तक पहुँचने लगते है जो सम्भवतः आगामी भविष्य में कष्टकारी और नकारात्मक परिणामों के साथ सामने आते है। गोल -गोल बातों में न घुमाते हुये सीधे-सीधे मुद्दे की बात ढंके की चोट पर करते है जिससे कि आपके मन से भड़क रही सवालों के ज्वाला को जवाब रूपी जल से बुझाया जा सके।
पत्रकारिता की दृष्टि से बात करे तो एक या एक से अधिक व्यक्तियों के साथ वृहद कम्युनिकेशन स्थापित करने के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है व्यक्ति का स्वभाव और अत्याधिक सीमा तक विचारों की समानता  ये दो ऐसे अस्त्र है जिनसे किसी भी अपरिचित को परिचित में तब्दील कर उन्हें अपना बनाया जा सकता है। अब रही बात उस युवक की सीनियर विद्यार्थियों के साथ रहने की तो काफी जाँच पड़ताल की जाए तो ये बात भी गहरा राज छुपाये प्रतीत होती है जो कई लाभदायक बिंदुओं की ओर इशारा करती है। अपनी उम्र से बड़े लोगों के साथ रहने से उनका अनुभव प्राप्त होने के साथ-साथ उनसे नई-नई चीजें को सीखने को मिलती है तो वंही उम्र से बड़े व्यक्ति की संगति से आप असंगति से कोसों दूर रहेंगे क्योंकि जिस पड़ाव में आप जी रहे है वह पड़ाव वह जी चुका है एक सच्चा मित्र कभी नहीं चाहेगा कि वह अपने छोटे साथी को गलत दिशा की ओर प्रेरित करें साथ ही जिस क्षेत्र में आप सफलता की मंजिल पर अपना परचम लहराना चाहते है और आपका सीनियर साथी भी उसी क्षेत्र में अग्रसर है तो उसके रहते कई समस्याओं का आस्तित्व स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। अभी के लिये खैर इतना ही आगे भी मुखातिब होते रहेंगे आज्ञा दीजिये.....शुभरात्रि

टिप्पणी-पोस्ट को लेखक के व्यकितगत जीवन से जोड़कर न देखा जाए

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ