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शर्मनाक : क्या मूर्ति तोड़ने से विचारधारा अस्तित्वविहीन हो जायेगी?




बीते दिनों त्रिपुरा के बेलोनिया टाउन में कॉलेज स्क्वेयर स्थित रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति गिराने की घटना से त्रिपुरा में बनी नवजात सरकार सवालों के कठघरे में खड़ी हो गई है और बुद्धजीवि वर्ग के दिलों -दिमाग में ऐसे तमाम प्रश्न अपना बसेरा बनाते दिखाई दे रहे सम्भवतः जिनका अधिकारिक तौर पर जवाब मिलना आसमान से तारे तोड़ने जैसा प्रतीत हो रहा है। क्या मूर्ति तोड़ने से विचारधारा अस्तित्वविहीन हो जायेगी ? मूर्ति तोड़ एक विचारधारा विशेष लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ क्या जायज है ?

22 अप्रैल 1870 को जन्मे व्लादिमीर इलीइच लेनिन रूस में बोल्शेविक क्रांति के नेता एवं रूस में साम्यवादी शासन के संस्थापक थे। रूस के इतिहास में लेनिन अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित कराये हुये है सिर्फ रूस में ही नहीं बल्कि विश्व की राजनीति को भी इन्होनें एक नया मुकाम दिया क्रांति के रास्ते से गुजरते हुये तकदीर व तस्वीर बदलने में लेनिन का अहम योगदान था। मार्क्सवादी विचारक लेनिन के नेतृत्व में 1917 में रूस की क्रांति हुई थी रूसी कम्युनिस्ट पार्टी बोल्शेविक पार्टी के संस्थापक लेनिन के मार्क्सवादी विचारों को लेनिनवाद के नाम से जाना जाता है उस दौरान लोगों के दिल में विश्वयुद्ध को लेकर बहुत गुस्सा था। उसके बाद बोलशेविक खेमे के लोग सरकार के खिलाफ उतर आए। धीरे.धीरे बोलशेविकों ने सरकारी इमारतों में कब्जा करना शुरू कर दिया। इस तरह से सत्ता में बोलशेविक काबिज हो गए ये रूसी क्रांति थी। जिसने रूस का भविष्य बदल दिया और बोलशेविक सत्ता में आए और व्लादिमीर लेनिन सत्ता में आए। लेनिन ने बतलाया था कि मजदूरों का अधिनायकतंत्र वास्तव में अधिकांश जनता के लिए सच्चा लोकतंत्र है। उनका मुख्य काम दबाव या जोर जबरदस्ती नहीं बल्कि संघटनात्मक और शिक्षण संबंधी कार्य है।

त्रिपुरा में हाल ही में ही हुये चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी जीत दर्ज कराई है। जीत का ताज पहने एक सप्ताह भी पूरा नहीं हुआ कि लेनिन की मूर्ति तोडे़ जाने जैसी निन्दनीय घटनाओं को अंजाम दे दिया गया है। त्रिपुरा में 25 साल तक लेफ्ट फ्रंट यानी वामपंथियों का शासन रहा। लेफ्ट लेनिन की विचारधारा का समर्थक है। आरोप है कि बीजेपी समर्थकों ने कथित तौर पर वामपंथ के प्रतीक लेनिन की 2 मूर्तियां गिरा दीं। यदि यह वाकई राजनैतिक सियाशी से ओत-प्रोत कृत्य है तो वाकई देश के लिये दुःखद है क्योंकि क्या भारतीय राजनीति इतनी गिर चुकी है कि बुद्धिमत्ता पर स्वार्थ का पहरा लग गया ? सच बोले तो ऐसे लोग जो भले ही शिक्षित, जागरूक, जनप्रतिनिधि होने का दावा करते है और सत्ता के गलियारों में ऐसे कुकृत्यों को करवाते है इन्हें गधा कहने में भी शर्म आती है क्योंकि गधा भी अपना काम ईमानदारी से करता है। मुझे नहीं लगता कि किसी भी मूर्ति को तोड़कर किसी भी विचारधारा का अन्त किया जा सकता है चूकिं सृष्टि का नियम है परिवर्तन। इसलिये किसी भी विचारधारा को अनुशरण करने वाले लोगों के ग्राफ में बदलाव तो देखें जा सकते है लेकिन विचारधारा सदियों तक जीवित रहती है।

किसी भी विचारधारा को खत्म करने का प्रयास करके खुद की विचारधारा को श्रेष्ठ साबित करने की मानसिकता अन्यायसंगत है। बल्कि श्रेष्ठता के लिये मापदण्ड अगले को नष्ट कर नहीं अपितु इस प्रकार होनी चाहिये मान लीजिये उसने एक लाइन खीच कर रखी है तो उस लाइन को मिटाकर खुद को सर्वोच्च साबित करना सर्वोच्चता नहीं है जायज यह है कि उस लाइन से बड़ी लाइन खींचने की कोशिश कर खुद को महत्व को साबित किया जाये। हालांकि लेनिन की मूर्ति तोड़ने की यह पहली घटना नहीं है रूस के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के क्रम में विरोधियों ने 2013 के दिसंबर में लेनिन की एक मूर्ति को हथौड़े से मार.मारकर तोड़ दिया था तब प्रदर्शनकारी यूक्रेन के राष्ट्रपति का रूस के करीब होने का विरोध कर रहे थे इसके अलावा अन्य मौकों पर भी लेनिन की मूर्तियों को यूक्रेन में तोड़ा गया। एक रूसी अखबार के सर्वे में यह सामने आया था कि देश के 14 फीसदी नागरिक लेनिन की मूर्तियों को गिराए जाने के समर्थन में हैं । सर्वे में 57 फीसदी लोगों ने कहा था कि वे लेनिन को पॉजिटिव तौर से देखते हैं 2006, 2016 और 2017 में किए गए सर्वे में यह भी सामने आया है कि वक्त बीतने के साथ लेनिन की पॉपुलरिटी में कुछ बढ़ोतरी हो रही है

मूर्ति तोड़ी जाने जैसी घटनायें कहीं न कहीं सभ्य और विकासशील वतावरण पर करारा तमांचा है भारत एक बहुविचारधारा वाला देश है इस प्रकार की घटनायें संस्कार और सभ्यता पर प्रश्नचिन्ह बनी हुई है।




पारसमणि अग्रवाल