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सुनो भइया.....पत्रकार नहीं बनियो चाहे मोदी कक्का की बात मानके पकौड़ी बेच लियो

   

का...का...का कए रहे भइया...तुम पत्रकार बनविन की पढ़ाई करवे जा रहे। अरे भइया...जो का कर रहे। तुम चाहे मोदी कक्का की बात मान लियो और पकोड़ी बेचके रोजगार पा लियो पर पत्रकार न बनइयो।
’तुम ऐसो काए बोल रहे गरीबदास भइया...का हो गयो...पत्रकार बन विन में का बुराई है।’ चितिंत लहजे में टकेराम ने गरीबदास से पूछा। गरीबदास ने टकेराम की बात का जबाव देते हुए कहा कि ‘‘ अब हमाई जरूर तुम्हें बुरी लग रही हुए पर हम तुमई के भलाई के लाने कह रहे कि कछु नहीं मिले तो निर्मल बाबा से आर्शीवाद लेके पकोड़ी को ठैला लगा लो लेकिन पत्रकार नहीं बनो।

हो का गयो गरीबदास भइया...तुम साफ बताओ...घुमा फिरा के बोल रहे बात हमाए सिर के तीन बित्ता उपर से फुररररररर हो जा रही।
कितने सीधे हो रामदई तुम.....बहुतई श्रमिक शोषण है कौनउ काम की नईया शुरूआती दौर में तुमाई योग्यता... तुम चाहे जित्ते होशियार बने रहियो...लेकिन तुम्हें बेगारी की मार झेलने ही पड़ेगी झुंझलाते हुए गरीबदास बोला
चैंकता हुआ टकेराम ने पूछा...का कै रहे भइया। सच्ची में ऐसो है का ? गरीबदास गुस्से में हम का झूठ बोल रहे।
टकेराम गरीबदास को मनाता है और कहता है कि अरेरेरे आप तो गुस्सा हो गए। हम पूछई तो रए थे बस। हमने पारस की एक कविता पढ़ी थी वा में जो लिखो थो कि

एक महाश्य,नम्बर दो के काम कर रहे थे।पोल खुल न जाए डर थे।एक दिन उन्होनें डरते हुए डर का कारण बतायामैंनें तुरन्त ही उन्हें उपाय सुझाया।मैनें कहा‘‘जनाब आप पत्रकार बन जाइये।सारी समस्याओं से मुक्ति पाइये।शासन प्रशासन की चाय का मजा लीजिए।मंत्री नेताओं से दोस्ती कीजिए।सुनकर बात वह बोला’’आपका बहुत बहुत धन्यवाद।अब मैं रहॅूगा हमेशा र्निविवाद।

रचना सुनने के बाद गरीबदास कहता है कि ठीक है तुम्हें जो अच्छो लगे वो करो, हम तो चले अपनी ‘‘मोदी कक्का पकोड़ी भण्डार’’ की दुकान पर।

विशेष आग्रह- इसे लेखक के व्यक्तिगत जीवन की दृष्टिकोण से न देंखें। अन्यथा निर्मल बाबा की कृपा आप बरसना बंद हो जाएगी।