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वो मनहूस बारिश..…वो उदास सा दिल....छुट्टी का दिन..

प्रकृति की गोद में हरियाली खिलखिला रही हो, मौसम हसीन हो और साथ में झमझम बरसता पानी हो तो बात बहुत ही निराली है...मन खुद को रोक ही नहीं पायेगा। यह आनन्द तब ओर दुगना हो जाता है जब अवकाश हो और आप फ्री और आजाद हो...
कुछ यूं ही आज का अनुभव रहा ...सुबह से लेकर दोपहर तक तो सब ठीक ठाक सा था लेकिन दोपहर में बारिश के मौसम और जन्माष्टमी की छुट्टी ने खुद को धकेलने को विवश कर दिया खुले आसमान के नीचे...कुछ लम्हों को यादों में सजाने के लिए... बचपन को फिर से जी लेने के लिए, मजा भी खूब आया लेकिन उसके बाद जो हुआ उसे देखकर शायद ऐसा लगा कि आज का दिन मेरे लिए बेकार था क्योंकि कुछ लोग नाराज हो गए थे उन्हें टाइम न दे पाने की वजह से , तो वहीं बारिस में भींगने के कारण फीवर ने भी अपनी दस्तक देने की कोशिश की थी लेकिन वह ज्यादा देर तक कामयाब न हो सका। लेकिन जैसे ही बारिश में भींगने की बात एक सम्मानित मोहतरमा को मालूम चली तो बीमार हो जाने का हवाला देते हुए खुद का ख्याल करने की नसीहत दी यहां थोड़ा अपनापन सा लगा कि दूर होते हुए भी परवाह करने वाले पास है।
लेकिन बारिस में भींगने के बाद एक के बाद एक अप्रिय घटनाए होती जा रही थी लेकिन उस वक्त शायद मैं टूट सा गया जब आंखों से देखा कि जलेबी जैसा सीधा वह शख्स किसी ओर का हो गया जिसके लिए छोटे से वक्त में ही तमाम ख्याल सजा के रख लिए थे वो किसी ओर का हो गया था। गलती मेरी थी मुझे भटकना नही चाहिए था लेकिन एक ऐसे शख्स की तलाश सम्भवतः यह जख्म दे गया। जिस पर भरोसा किया जा सके। उसके साथ हर छोटी बड़ी खुशी शेयर कर सके। हर कदम पर वो हमारा साथ दे। और भी बहुत कुछ , खैर कुछ चीजों में खुद के साथ समझौता न कर पाने की स्थिति में इन हालात से गुजरना पड़ा।
मन इतना टूट चुका था कि किसी को भी अपना बना लेने की बैचनी जहन की स्थिरता को समाप्त किए थी बेचैनी कुछ लोगों से बात कर उस शख्स की तलाश भी जिसे उसकी जरूरत थी लेकिन ऐसा कोई नहीं मिला क्योंकि सब किसी न किसी को हो चुके थे।
उदास से दिल के साथ यादों के पिंजरे में कैद हुए इन लम्हों को कभी नहीं भुलाया जा सकता भले ही चेहरे और व्यवहार में ये हावी न हो पाए लेकिन हृदय में घाव बन हमेशा सबक देता रहेगा।

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