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काए भइया, तुम जिंदा नईया का??

वतन आजाद हुए एक लंबी दूरी तय करने के बाद विकास की तकदीर व तस्वीर भी परिवर्तनशील है। चूँकि सृष्टि का नियम है परिवर्तन।
विकास की ओर एक फलांग आगे बढ़ते हुए भारत तकनीकि दिशा में खुद को निखारने का कार्य कर रहा है। डिजिटल इंडिया, स्मार्ट विलेज जैसी कई परियोजनाए डिजीटलीकरण के सुनहरे भविष्य का आगाज कर रही है। अधिकांश हाथों में स्मार्ट फोन आ जाने से सोशल मीडिया पर भी एक लंबा कारवां सक्रिय हो गया।
युवा प्रधान देश कहलाने वाले युवा भारत के युवाओं की करोडों की संख्या में सोशल मीडिया पर मौजूदगी की कहानी स्वतः बयां कर रहा है।
"फेसबुक नहीं चलाते, इंस्टा पर फोटो अपलोड कर देना, अरे भाई व्हाट्सएप कर देना, हा हा मेल भेज देना।" ऐसी तमाम बातें बेहद आसानी से सुनने को मिल जाएगी।
जी जी यह सोशल मीडिया के विभिन्न एप्प की ही बात हो रही है। अगर इनको चलाने की असमर्थता जाहिर कर दो तो कुछ ऐसी बातें सुनने को मिलती है कि "काए भइया तुम डिजिटल नईया का?, जमाने के साथ खुद को बदलो" आदि आदि।
कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि सोशल मीडिया मौजूदा हालातों की मूलभूत जरूरत है। हालांकि इसका सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव है यह निर्भर इस बात पर करता है कि आपकी बुद्धिमत्ता इसका प्रयोग किस प्रकार करती है। उदाहरण के तौर पर कि सिर्फ सिर्फ चुटकला आदि भेजकर या सोशल नेटवर्किंग मजबूत कर।
फिलहाल कुछ भी हो आधुनिक परिवेश में यदि आप सोशल मीडिया के इस्तेमाल से परहेज कर रहे तो यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि "काए भइया! तुम जिंदा नईया का?"

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