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Fiemits Fuclty : सिर्फ टीचर नहीं बल्कि एक अच्छी दोस्त भी

लिखने का हुनर रखने के बाद भी यदि उन सम्मानियों के बारे में न लिखें जो ज्ञान का प्रकाश फैलाने के साथ साथ जोखिम भरे हर मोड़ पर साथ ढाल बन सामने आ जाते है।
चाहे अमित सर हो या आबिद सर , प्रेरणा मेम हो या दीक्षा मेम , सुनीता मेम हो लुबना मेम, चाहे फिर लक्षित सर हो या कमल सर। सब भी का स्वभाव बेहतर है अपने घर अपने शहर को दूर छोड़ जब इस कैम्पस की दहलीज पर कदम रखा था तब सपने भी नहीं सोचा था कि सारे टीचरों के साथ इतनी अच्छी बॉन्डिंग बन जाएगी। लिखना बहुत कुछ है पर क्या लिखूं शब्दों का अभाव सा लगने लगा है।
अमित सर द्वारा कैरियर को लेकर मोटिवेट करना एक नए उत्साह का सृजन करता है। कोई भी मसला हो हर मसले पर सर के साथ विचार विर्मश कर एक सार्थक हल तक पहुँचा जा सकता है। आज भी याद है इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान की वह प्यार भरी डाँट और समझना जब राह से मैं थोड़ा सा भटक रहा था शायद उसी का प्रताप है कि राजनीति के दल दल से दूर हूँ।
बात यदि आबिद सर की करें बता दें कि आबिद सर को-वार्डेन का दायित्व भी सम्भाल रहे है।आबिद सर भी क्लास के बाहर आवश्यकता पड़ने पर एक मित्र के रूप में साथ खड़े दिखाई देते है लखनऊ की नवाबी गलियों की सैर आबिद सर के साथ ही करने को मिली। गर्मियों में गुस्से में हॉस्टल छोड़ने की घटना ने एकदम तोड़ सा दिया था उस वक्त आपका साथ संजीवनी बूटी के भांति कार्य कर रहा था।
बात यदि प्रेरणा मेम की करें तो मैम भी बहुत सपोर्ट करती है कोई भी बात हो मेम के साथ शेयर करने में कोई भी दिक्कत नहीं होती। मेम बहुत ही केयरफुल है।
कई बार कुछ बातों को लेकर जब भटकाव की स्थिति मेम के मार्गदर्शन के कारण मुझे आगोश में नही ले पाई।
बात यदि दीक्षा मेम की करे तो मेम भी सपोर्ट करने वाली पर्सन है। मुझे याद है जब इन्वेस्टर समिट के पास लेकर वापस आते वक्त घटी घटना। पर आपकी डाँट और समझना फिर दोनों दिन की रिपोर्ट लेना। रोने के वाकई मेम बहुत अच्छा लगा था।
बहुत सारे ऐसे किस्से है जहाँ फैकल्टी एक मित्र की भूमिका में नजर आई और इस नए शहर के नए माहौल ल बीच नए लोगों के बीच अपनापन का अहसास कराया थैंक्यू फैकल्टी

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