🌹🌹🙏🌹🌹🙏🌹🌹
हे विधाता अजब है तेरी माया,
जिसे आज तक कोई जान न पाया,
हार गया तेरे आगे आकर हर कोई,
चरणों में सर रखकर वो बहुत रोई,
तेरे से ही होता अंधेरे में उजाला,
तभी तो कह लाता तू जग का रखवाला ।
आज बताती हूं दोस्तों तुम्हें मैं विधाता का अजीब खेल,
जिसका नहीं हुआ कभी सुधा के जीवन में मेल,
हर परीक्षा में हो गई वह फेल,
एक वक्त विधाता ने ऐसा कहर ढाया,
सुधा के सिर से उठ गया मां का साया ,
पल भर जाकर बेचारी आंसू बहा आई ,
लोट फिर कभी वो जाना पाई, जैसे, तेसे भूले वो दिन उसने की,
फिर उठ गया छोटे भाई का साया,
वहा भी खास बहन उसका मुंह देख ना पाई ,
रोटी बिलखती वहा से फिर ससुराल लौट आईं ,
आज पूछती विधाता से वो एक सवाल है ,
हे विधाता क्यों तूने मुझ पे ये कहर बरसाया है ,
पहले ही सर पर नहीं पिता का साया है,
और जो चाहने वाले थे मुझे उस भी तूने उठाया है,
अभी तो सूखे नहीं आंख के आंसू थे, की?फिर तूने???
भतीजी को विधवा बना डाली ,
कोराना के चलते वहा भी नहीं जा सकी,हाथ मलते रह गई मैं खाली,
आज अंतिम सांस ले रही उसकी छोटी बहन प्यारी,
जिसे तडफता ये अखियां देख नहीं पारी ,
कोरोना के चलते अगर हो गया उसे कुछ,
तो विधाता उसे भी रोने नहीं जा सकती ,
है विधाता तूने मुझे क्यो?बेबस और मजबुर कर डाली।
सुनकर करूंगा था उसकी आंखें मेरी भी आई, ज्यादा देर में भी उसके पास रूक न पाइ ,
नहीं मागा था ,गाड़ी बंगला , नहीं कोई ख्वाइश थी पाली ,
चाहा था परिवार सलामत रहे मेरा,
वह भी तेरी लीला में मिट गया विधाता,
किसी बेरी को भी ऐसी लीला ना दिखा ना ,
✍️✍️ शिवा सिंहल,✍️✍️ आबू रोड,माउंट आबू,(राजस्थान)
0 टिप्पणियाँ