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हमारे भइया- अभिनव त्रिपाठी भइया

Happy Birthday Abhinav bhaiya 

आज एक ऐसे शख्स का जन्मदिन है जिनका इस पारस को "पारस" बनाने में भी योगदान है, जिनके साथ ने कभी बड़े भाई की कमी को महसूस नहीं होने दिया जिस लाड़ दुलार और प्यार एक छोटे भाई को बड़े भाई से अपेक्षा रहती उससे भी कंही ज्यादा उस शख्स से मिला, जी सही समझे हम बात कर रहे हैं अभिनव त्रिपाठी भइया की..आज उनका जन्मदिन है तो संवेदनाओं को शब्दों की मालाओं में पिरोते हुए उनके लिए कुछ लिखने का यह दिली प्रयास है।
अभिनव भइया से मुलाकात आज से लगभग 10 साल पहले भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की कार्यशाला में हुई थी, बचपन में साइकिल के पीछे कैरियर पर बैठ उनके साथ कोंच घूमने में जो आनन्द आता था वो शायद किसी प्लेन में भी उड़कर न आए। बड़े भाई के रूप में अपनी पॉकेट खर्च में से कुछ रुपये हमें मिलना किसी अशर्फियों से कम नहीं होता। देश की राजधानी दिल्ली से दिल लगी तो थी पर कभी दिल्ली नहीं घूमी थी पहली बार दिल्ली अभिनव भइया के साथ ही गया जब सम्भवतः इंटर क्लास में था लेखन में रुचि रखने के कारण मेरा पत्रकारिता से लगाव था उन्होंने जिस कॉलेज से मास कम्युनिकेशन किया था उस कॉलेज को भी घूमने गए साथ ही साथ दिल्ली में बहुत घुमा। खास बात तो यह रही कि मुझे एक हफ्ते में तीन बार अभिनव भइया के माध्यम से संसद का शीतकालीन सत्र देखने को मिला। जो मेरे लिए अभूतपूर्व रहा। अभिनव भइया के माध्यम से ही वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज, वरिष्ठ पत्रकार मज़कूर आलम, कथाकार पंकज रामेन्दु, कथाकार ज्योति कुमारी आदि का सानिध्य पाने का अवसर मिला। अभिनव भइया के साथ रहकर ही कुछ यूनिक कुछ नगर के साथ करने की प्रेरणा जागी जो कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल के रूप में आप सब के सामने है।
 आपका साथ ,आपका सानिध्य मन को उत्साह से परिपूर्ण कर देता है। आपके लिए जितना लिखा जाए उतना कम है क्योंकि साथ बिताए संस्मरण इतने सारे है कि एक किताब ही बन जाए। इसी विश्वास के साथ एक बार पुनः आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं कि एक बड़े भाई के रूप में आपका साथ यूं ही बना रहे।

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