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शर्म करो...कब तक सोते रहोगे ? या फिर खुद को सभ्रांत कहना बंद कर दो...

किसी बेहतर नगर का निर्माण पत्थर और चट्टानों से नहीं होता बल्कि उस नगर के नागरिकों द्वारा होता है लेकिन यह विडंबना है कि जिम्मेदार, सभ्रांत, समाजसेवी आदि चोले ओढ़कर कुम्भकर्णीय नींद में है, निजी स्वार्थ के नशे में है और स्वयं की पीठ थपथपाने में व्यस्त है। वक्त बार बार आपको अवसर दे रहा है लेकिन आप गूंगे बहरों की तरह बर्ताव कर रहे है, आने वाली पीढ़ी आपको कोसे न? आने वाली पीढ़ी आपकी नींद की सजा न भोगें... अगर ऐसा नहीं है तो सड़कों पर उतरी बेबश बेटियों के चीख चीख कर यह कह रही थी कि "वी वांट टू फ्लाई, लेकिन खामोश! मेरा नगर सो रहा है। अपना गुस्सा प्रदर्शित करते हुए वह सहयोग की अपील भी कर रही थी इतना सब होने के बाद भी क्यों नहीं आपके दिल और दिमाग ने एक बार विचार करने की जहमत उठाई? साहब..प्रतिभाओं को बैशाखियों की जरूरत नहीं होती बल्कि उन्हें प्रोत्साहन की आवश्यकता होती लेकिन इसमें भी आप अक्षम है... जिससे तमाम प्रतिभाएं अपनी प्रतिभा निखारने को घर की दहलीज नहीं लांघ पाती है, तमाम ऐसी प्रतिभाएं है जो आपके उदासीनता के खुद में ही सिमट के रह जाती है और आप बात करते है समाजसेवा की..खुद के सभ्रांत होने की ...खुद के जिम्मेदार नागरिक होने की ...अरे साहब बस भी कीजिए ....कब तक सोते रहोगे ? और यदि सोना ही है तो फिर खुद को सभ्रांत कहना बंद कर दो...

जी साहब, आपका उदासीन रवैया प्रतिभाओं के आगे बढ़ने में अवरोधक साबित हो रहा है, क्योंकि प्रोत्साहन देने के वजह टांग खिंचाऊ नीति के अनुपालन में आप जुट जाते है आप न ढंग से सो रहे है और न ही ढंग से जग रहे है आपका हाल अधजल गगरी छलकत जाए जैसा हो गया। उसके बाद भी आप नगर विकास के मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहे बिजली, पानी, सड़क आदि से विकास नहीं होता। क्योंकि उस नगर को विकसित नगर कैसे कह सकते जंहा प्रतिभाओं को निखारने के लिए संसाधनों एवम मुकम्मल मंच का आभाव हो, उस नगर को विकसित नगर कैसे कह सकते जंहा प्रतिभाएं आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हो लेकिन आप उनका सपोर्ट करने के बजाय टांग खिंचाऊ दल के नेता बनने में लग जाते.....छोड़िए इन बातों को ...आपको भाषण लग रहा होगा क्योंकि आप सो रहे है।
कल्पना कीजिए जिस कोंच नगर के लोग मुंबई, जम्मू कश्मीर, गोवा, लखनऊ, अकोला ,शिमला जैसे शहरों को  घूमने के लिए जाते हो उन्ही शहर के लोग आपके व्यवस्था विहीन कोंच नगर को देखने के लिए आये आपके लिए कितने सौभाग्य और गर्व की बात है, जिन बाल कलाकरों को महामहिम राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि माननीयों का आशीर्वाद मिल चुका हो वह आपके बीच प्रोत्साहन की अभिलाषा लेके आये तो आपके लिए कितनी बड़ी बात होगी, लेकिन आप उदासीनता और निजी स्वार्थ की लोलुपता में मग्न होकर समाजसेवी, वरिष्ठ नागरिक आदि होने का लिवास पहने खुद की सराहना में मंत्रमुग्ध रहते है जबकि आपके नगर में बाहर से आये वही असाधारण लोग एकदम साधारण तरीके से कम संसाधनो में भी रहकर खुशी खुशी चले जाते है अरे शर्म की बात तो तब है आपके लिए जब उन्हें आपके नगर आकर आपके नगर में आपके लिए हो रहे आयोजन के लिए प्रेसवार्ता कर स्थानीय युवा आयोजकों का सहयोग करने के लिए निवेदन करना पड़ता है फिर जूं नहीं रेंगता है, जी हम बात कर रहे है कोंच जैसे छोटे कस्बे में आयोजित तृतीय कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल की। 
आप भले ही सोते रहे लेकिन इस वर्ष भी चतुर्थ कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल भव्य और विशाल होगा अपनी आगामी पीढ़ी को एक मुक्कमल मंच दे सको आइए इसके लिए जागे और एकजुट होकर सहभागी बने क्योंकि यह कार्यक्रम व्यक्ति विशेष संस्था विशेष वर्ग विशेष का नहीं नगर का आयोजन है।

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