चतुर्थ कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल के आयोजन का शंखनाद हो चुका है, रीति नीति को परिवर्तित कर इस तरीके से फेस्टिवल को संजोने का प्रयास कर रहा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। क्योंकि कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल कोंच को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाने का कार्य कर रहा है, शहर सिनेमा और गांव कस्बों की प्रतिभाओं को एक मंच पर लाने का कार्य कर रहा है। नगर के विकास में योगदान देने वाली विभूतियों को याद कर उनकी स्मृति में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मान से नवाजने का काम कर रहा है।
विपरीत परिस्थितिया है, बजट नहीं है, संसाधन नहीं है और कोंच जैसी जगह में कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल का आयोजन पत्थरों में फसल उगाने जैसा है, अचानक से निजी जिंदगी में घटी घटनाओं ने अंदर से भी तोड़कर रख दिया इस साल पिछली साल जैसा उत्साह नहीं ला पा रहा न ही उतना हौसला जुटा पा रहा हूं ,लेकिन बिखरते पारस को पुनः समेटने में जुट गया हूँ जिससे पारस को पारस बनाया जा सके। इस वर्ष कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल को चार चरण में विभाजित किया है विश्वास है कि आप सबका साथ इस साल भी एक नई इबारत रचने का कार्य करेगा। क्योंकि जिस क्षेत्र में सिनेमा का स न हो वँहा कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल जैसा आयोजन बड़ी बात है विदेशों से भी इसकी सराहना की जा चुकी है, निश्चित तौर पर यह फेस्टिवल कोंच और कोंच की प्रतिभाओं के लिए वरदान होगा क्योंकि कल्पना कीजिए जिस मुंबई दिल्ली लखनऊ शिमला अकोला को आप घूमने जाते है वँहा के लोग कोंच फ़िल्म फेस्टिवल में सहभागिता के लिए कोंच आने के लिए उतावले हो तो ये कोंच नगर के लिए फक्र की बात है। कल्पना कीजिए कोई व्यक्ति 300 शहरों के नाम नहीं गिना सकता लेकिन कोंच फ़िल्म फेस्टिवल के तत्वावधान में 300 शहरों के 1100 कवियों से सुशोभित कोंच काव्य कुम्भ का आयोजन अपने आप में बड़ी बात है।
आप सब अपने है यह ब्लॉग भी अपना है इसलिए जो मन में आता सब यही बोल देता आपका साथ ही मेरा हौसला है इसलिए इस कोंच इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल रूपी चिंगारी को बुझने न देना क्योंकि जिस दिन ये शोला बन जाएगी उस दिन कोंच की तकदीर और तस्वीर बदल जाएगी।
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