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राजनीति को परिवर्तन की दिशा में मोड़ गए सुरेश गुप्ता बाबूजी

भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रारंभ हुए लगभग सात दशक हो चुके है, लेकिन इस वर्ष हो रहे कोंच नगर निकाय चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी सुरेश कुमार गुप्ता ने अपने चुनाव चिन्ह शंख से ऐसा शंखनाद किया कि एक नया इतिहास रच गया साथ ही साथ राजनीति का रुख स्वच्छ साफ़ सुथरी दिशा में परिवर्तित कर दें।
आपको बता दें कि कोंच नगर पालिका परिषद से अध्यक्ष पद के निर्दलीय प्रत्याशी सुरेश कुमार गुप्ता बाबूजी चुनाव चिन्ह शंख के साथ अचानक राजनैतिक अखाड़े में आ गए जिससे अन्य प्रत्याशियों के समीकरण बिगड़ गए क्योकि बाबूजी न ही नेता है और न ही राजनीति से ताल्लुक रखते है।  अचानक से चुनाव मैदान में आ जाना लोगों के बीच काफी चर्चा का विषय रहा। 
खास बात तो है कि सुरेश कुमार गुप्ता बाबूजी द्वारा चुनाव आयोग की मंशा का अनुपालन करते हुए राजनीति के रुख को मोड़ नगर निकाय चुनाव में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा चुके है।  बाबू जी द्वारा चुनाव पुरे दम ख़म से लड़ा गया लेकिन खास बात यह रही कि वह किसी भी मतदाता के पास वोट मांगने नहीं गए।  न ही उन्होंने घर घर जाकर मालाएं पहनी न ही लिफाफे लिए।  इसको लेकर उनका कहना है कि मैं लोगों को झूठ बुलाकर उनका आश्वासन लेना नहीं चाहता। न ही मुझे तिलक माला और लिफाफे की चाहत थी क्योकि इसके असली हकदार आप है क्योकि नगर की किस्मत रचने का कार्य आप करते है।  मैं तो बस सेवक हूँ इसलिए इन सब पर मेरा कोई हक नहीं था। मैं निजी स्वार्थ की राजनीति नहीं बदलाव की पहल के लिए चुनावी मैदान में हूँ। 
बाबूजी इतिहास में सम्भवतः ऐसे पहले प्रत्याशी होंगे जिन्होंने राजनीति को बदलाव के तरफ मोड़ते हुए दिखावे शोर गुल के प्रचार प्रसार से दूर एक नए तरीके को अपनाया।  लोगों में चर्चा तो इस बात कि भी है कि बाबूजी का नाम गिनीज बुक , लिम्का बुक आदि में दर्ज हो सकता है और कोंच वासियों को इस राजनैतिक परिवर्तन के लिए गर्व करने का मौका मिल सकता है।

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