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देखा मैने एक कहर

देखा मैने एक कहर,
बढ़ रहा था जो हर पहर
पहले तो था अजीब उत्साह
लेकिन फिर,
भयभीत हो गया था मै
हाँ देखा,
मैने एक ऐसा कहर
जँहा बन्दी बना लिया था नर को
जन्म दे दिया था डर को
छीन लिया था निवाला भी
और,
ले ली गई कई जानें
अपने आगोश में
नहीँ बख्शा भगवान को भी
दे दी जल समाधि।
कर दी नगर की गति आधी।
इसलिये हे मेरे मालिक
चाहे कोई भी सितम करना।
बस, एक करम करना।
ऐसा नजारा दुवारा मत दिखाना।
किसी भी बसेरे को मत दिखाना।

- पारसमणि अग्रवाल

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