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अक्षर-अक्षर झूम रहा इश्क के नशे में

प्रेमिका का अपने प्रेमी को पत्र

ऐ जी,
      सुनो जी, क्या लिखूं, कुछ लिखना चाहती हूँ तुम्हारे लिये, पर दिल की बात को शब्दों की माला में कैसे पिरोए? क्योंकि लिखा सिर्फ कल्पनाओं को जा सकता, सिर्फ निर्माण की हुई पंक्तियों को लिखा जा सकता, न कि दिल के जज्बातों को लिखा जा सकता, न दिल के प्यार को,इसलिये शब्दों को निगाहों में कैद न कर भावनाओं को पढ़ियेगा।
पता बाबू जब तुम्हारे लिये यह खत लिख रही हूँ तो मानो ऐसा लग रहा है कि कागज पर उकेरे जाने वाला अक्षर-अक्षर रोमांचित होकर इश्क के नशे में झूम रहा हो और चीख-चीख कर कह रहा हो "आई लव यू बाबू"।
लिखना तो बहुत कुछ चाहती पर प्यार को शब्दों में कैसे सृजित करूँ समझ से परे है क्योंकि प्यार किताब का कोई टॉपिक नहीं है जिसका अर्थ बताते हुये उसका वर्णन किया जा सके। प्यार तो एक तड़प है, एक विश्वास है, एक पवित्र रिश्ता है जिसका जिक्र चन्द शब्दों में नहीं किया जा सकता।
जिस प्रकार जीरे के बिना रायता,नमक के बिना सब्जी अधूरी है ठीक उसी प्रकार तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी अधूरी है, तुम ही मेरी सांस हो,तुम ही मेरी धड़कन हो,तुम ही मेरी ख़ुशी हो तुम ही मेरी दुनिया हो, हमेशा के लिये मैं तुम्हारी होना चाहती पर इस जालिम समाज की कई व्यवस्थायें दीवार सी बनती दिख रही है लेकिन तुम फ़िक्र न करो मैं तुम्हारी थी, तुम्हारी हूँ और तुम्हारी रहूँगी

               आपकी अपनी
              …..............

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