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लड़की हॅू मैं


पारसमणि अग्रवाल






चंचल स्वभाव के साथ चहकती फुदकती संध्या कैरियर के सुनहरे सपने लिए जिन्दगी की रेस मे आगे बढ़ रही है। संध्या पत्रकारिता में अपनी दिलचस्पी रखती है। रोज की भांति वह आज भी अपने ऑफिस गई थी। ऑफिस में तो सबकुछ ठीक ठाक रहा मगर शाम के वक्त घर आते समय रास्ते में जाम मिल गया। काफी देर तक इंतजार करने के बाद जब जाम नहीं खुला तो पास खड़े एक सज्जन में अंगुली से इशारा करते हुए उसे दूसरा रास्ता बताया। उस रास्ते पर आज से पहले संध्या कभी गई थी। लेकिन रात के होते आगाज और जाम की बेबसी ने उसे उस रास्ते पर जाने को मजबूर कर दिया। उस मार्ग पर चलने पर संध्या रास्ता भटक गई और काफी आगे निकल गई। अकेली संध्या किसी से सही मार्ग पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाई क्योंकि हैवानियत के खून से रंगा अखबार रोज उसके आंखों से होकर गुजर रहा था। जैसे-तैसे कर घर पंहुची संध्या से जब उसकी मॉ ने लेट आने का कारण पूछा तो संध्या धीमी आवाज में यह कहती हुई अन्दर चली गई कि ‘जाम के कारण रास्ता भटक गई थी। अंजान व्यक्ति से रास्ता कैसे पूछ सकती थी। आखिर लड़की हॅू मैं।’’