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सपना मांगलिक की रचनायेँ

माँ दीप सी जलती रही

चूल्हा चौका पति और बच्चे

दिन रात ही वो खटती रही

हम मनाते रहे दीवाली

माँ दीप सी जलती रही

रही बिखेरती ममता का आलोक

भूल सारे अपने दर्द और शोक

ढांप आँचल से नन्हीं सी लौ वो

तिमिर हालातों के हरती रही

हम मनाते रहे दीवाली

माँ दीप सी जलती रही

करके गठजोड़ औलादों का

खुद टूटकर माँ घटती रही

कलह द्वन्द करते रहे हम

वो वस्त्र शांति के सिलती रही

हम मनाते रहे दीवाली

माँ दीप सी जलती रही

बंट गयी साथ वो घर के

उन संतानों की रहमत से

छोड़ दिया मांझे ने साथ

कटी पतंग सी गिरती रही

हम मनाते रहे दीवाली

माँ दीप सी जलती रही

बोली न शब्द कटु फिर भी

मोती नैन सीप धरती रही

कौन आस बची मन उसके?

भावों से भाव गुंथती रही

हम मनाते रहे दीवाली

माँ दीप सी जलती रही



रावण और उसके सिर

दिखता तो है एक

मगर उस एक सिर में ही

समाहित हैं दस सर

जो न जाने कबसे ,कितनी ही

सीताओं को हरते आये हैं

कितनी ही विवश मंदोदरियां

अपनी सौतनों और पुत्रों की लाशों का

स्वागत करती आई हैं

पर कोई दस सिर वाले इन पुरुषों से

व्यवस्था और सामंजस्यता तो सीखे

जो वाकई काबिले तारीफ़ है

एक सिर जब किसी सीता को ताक रहा होता है

तब तक दूसरा सिर उसका

अपहरण करने की योजना बना लेता है

तीसरा सिर कामयाब न होने की दशा में

एसिड अटेक की रूपरेखा तैयार कर रहा होता है

चौथा अपनी पत्नी को दासी की तरह

प्रताड़ित करने में मग्न होता है तो

पांचवां अपनी अजन्मी पुत्री को गर्भ में ही

मरवाने पर विचार कर रहा होता है ,

छठा सिर अपनी बहन को लताड़ने और उसे

विवाह में दिए जाने वाले तोहफों से

मन ही मन कुढ़ रहा होता है ,
सातवाँ मजहवी कट्टरपंथी सिर

धार्मिक असहिष्णुता की कूटनीति रचता है

आठवाँ मौके का फायदा उठा

वोट बेंक की राजनीति करता है

नवां ,आठवें का पिछलग्गू बन

देश में भ्रष्टाचार फैलाता है

और दसवां हाथ में कैमरा और माइक संभाले

इन रावणों को राम और राम को रावण

सावित करने की जुगत में लगा रहता है

लंका में आग लगाने के लिए तो हनुमान जरूरी थे

मगर हमारे देश में आग लगाने के लिए अदद

एक पुरुष और उसके खुरापाती दस सिर ही काफी हैं

शायद इसलिए ही तो हमारा देश जल रहा है

धूं-धूं करके जल रहा है



रोये इस कदर

रोये इस कदर कि

संग कायनात रोये

हर कली हर गुल के साथ

बाग़ - ए बहार रोये

पाखर रोये ,नदिया रोये

साथ समुन्दर सात भी रोये

किसको अच्छी लागे विरह

कौन सह सके दिल के बिछोहे

दिल का दर्द तो जाने वो ही

जो अपने दिलवर को खोए

पतझड़ जीवन ,मरघट दुनिया

आदमी जिन्दा लाश सा होए

दिल का दर्द तो जाने वो ही

जो अपने दिलबर को खोए



 

दिल की किताब

दिल की किताब के पन्ने

कई बार पलट के देखे

पहला भी पन्ना खाली

और आखिरी भी खाली

कहने को है  सभी कुछ

पास अपने जरूरत का

कल दिल प्यार का था प्यासा

और है आज भी सवाली

चिंतित सब हैं मेरी खातिर

शुभचिंतक इतने मिले

कल रिश्तों की थी गागर खाली

जिसमे है आज भी कंगाली

पतझड़ ही पतझड़ अब तो

उम्र का और ख्वाइशों का

वन हूँ मैं निर्जन सा कोई

कल भी सूना सूना था

न आज भी हरियाली

हर शय खाली – खाली





 सपना मांगलिक

शिक्षा-एम्.ए ,बी .एड (डिप्लोमा एक्सपोर्ट मेनेजमेंट )

संस्थापक  –जीवन सारांश समाज सेवा समिति ,शब्द  -सारांश ( साहित्य एवं पत्रकारिता को समर्पित संस्था  )

प्रकाशित कृति-(तेरह)पापा कब आओगे,नौकी बहू (कहानी संग्रह)सफलता रास्तों से मंजिल तक ,ढाई आखर प्रेम का (प्रेरक गद्ध संग्रह)कमसिन बाला ,कल क्या होगा ,बगावत (काव्य संग्रह )जज्बा-ए-दिल भाग –प्रथम,द्वितीय ,तृतीय (ग़ज़ल संग्रह)टिमटिम तारे ,गुनगुनाते अक्षर,होटल जंगल ट्रीट (बाल साहित्य)बोन्साई (हाइकु संग्रह )


संपादन –तुम को ना भूल पायेंगे (संस्मरण संग्रह ) स्वर्ण जयंती स्मारिका (समानांतर साहित्य संस्थान),बातें अनकही (कहानी संग्रह )

सम्मान-आगमन साहित्य परिषद् द्वारा दुष्यंत सम्मान ,प्राइड ऑफ़ नेशन द्वारा सीमापुरी टाइम्स ,भारतेंदु समिति कोटा ,एत्मादपुर नगर निगम द्वारा काव्य मंजूषा सम्मान ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक द्वारा ज्ञानोदय साहित्य भूषण २०१४ सम्मान , ,अखिल भारतीय गंगा समिति जलगांव द्वारा गंगा गौमुखी एवं गंगा ज्ञानेश्वरी साहित्य गौरव सम्मान , गुगनराम एजुकेशनल ट्रस्ट (भिवानी,हरियाना  )द्वारा पुस्तक टिमटिम तारे एवं कल क्या होगा पुरुस्कृत एवं विर्मो देवी सम्मान से सम्मानित , रुमिनेशन एंड कल्चरल सोशायटी मेरठ द्वारा प्रेरक पुस्तक सफलता रास्तों से मंजिल तक सम्मानित ,राष्ट्र भाषा स्वाभिमान न्यास (गाज़ियवाद)द्वारा कृति सफलता रास्तों से मंजिल तक पुरुस्कृत ,हिंदी साहित्य सभा आगरा द्वारा शिल्पी शर्मा स्मृति सम्मान ,आगरा महानगर लेखिका मंच द्वारा महदेवी वर्मा सम्मान ,सामानांतर संस्था द्वारा सर्जना सम्मान ,हेल्थ केयर क्लब आगरा , विभिन्न राजकीय एवं प्रादेशिक मंचों से सम्मानित

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